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हमारी वास्तविक स्वतंत्रता का उद्देश्य नवोन्मेषी भारत की प्रतिज्ञा

सपना सी.पी. साहू ‘स्वप्निल’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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१५ अगस्त हमारी स्वतंत्रता का महोत्सव है। यह दिन अमर बलिदानों की स्मृति, प्रत्येक भारतीय घर में तिरंगा फहराने, देशप्रेम और आत्मगौरव से भर जाने का वार्षिक अनुष्ठान है। यह वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत को नवोन्मेषी उपायों से प्रगति के पथ पर अग्रसर करने हेतु गहन आत्मचिंतन का अवसर भी है। हमें कभी नहीं भूलना चाहिए, कि यह अवसर अनगिनत बलिदानों के प्रति नतमस्तक होने और कृतज्ञता व्यक्त करने का है, जिनके कारण हमें सदियों की परतंत्रता से मुक्ति मिली, लेकिन हमारी स्वतंत्रता का तात्पर्य केवल राजनीतिक स्वायत्तता तक सीमित नहीं है। यह ऐसी प्रतिज्ञा है, जो हमें भारत के सर्वांगीण उत्थान के लिए प्रेरित करती है, जहां प्रत्येक नागरिक अपनी संपूर्ण क्षमताओं का उपयोग कर सके। ७८ वर्षों की स्वतंत्रता के बाद ७९ वें स्वतंत्रता उत्सव की बेला पर हमें उन मूलभूत स्तंभों पर विचार करना होगा, जो भारत को सुदृढ़, सुव्यवस्थित, सशक्त, समृद्ध और विश्वगुरु के रूप में स्थापित करें।
सर्वप्रथम, हमें एक ज्ञान-आधारित राष्ट्र की स्थापना करनी होगी। शिक्षा और नवाचार किसी भी देश के भविष्य निर्माण के आधारभूत तत्व हैं। एक प्रभावी शिक्षा प्रणाली इतिहास का बोध कराती है, वर्तमान को जीवंत बनाती है और भविष्य के सुदृढ़ स्वप्न का मार्ग प्रशस्त करती है। हमें ऐसी शिक्षा नीति की आवश्यकता है, जो रटने-रटाने की परिपाटी से मुक्त हो और समालोचनात्मक सोच, रचनात्मकता तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दे। भारत सरकार की ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२०’ इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका सफल क्रियान्वयन ज्ञान-कौशल आधारित राष्ट्र का निर्माण करेगा।
हमें अपनी प्राचीन ज्ञान परंपराओं जैसे वेद, उपनिषद, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा व योग को आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ एकीकृत कर ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करनी होगी, जो विश्व में भारत के ज्ञान-विज्ञान को पुनः आदर्श रूप में स्थापित करे। नवोन्मेषी अनुसंधानों में निवेश हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों तक अन्तरजाल की पहुंच सुनिश्चित करना और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है। क्वांटम कम्प्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और हरित ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अग्रणी बनकर ही हम विश्व मंच पर परचम लहरा सकते हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की उपलब्धियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि भारत में प्रतिभा और संभावनाओं की कोई कमी नहीं है। आवश्यकता है केवल सही दिशा, दशा और प्रोत्साहन की।
हमारी अगली प्रतिज्ञा सामाजिक सद्भाव और विविधता में एकता का विस्तार होना चाहिए। भारत की सांस्कृतिक विविधता हमारी शक्ति है, किंतु जातिवाद, धर्म, मजहब और लिंग आधारित भेदभाव अब तक पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं। भारत की उन्नति तभी संभव है, जब सभी को समान अवसर प्राप्त हों और समाज में समरसता हो। जातिगत, धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय विभाजन राष्ट्र की प्रगति में बाधक हैं। सच्ची स्वतंत्रता का अर्थ सभी के लिए समान और सम्मानजनक जीवन है। आज के परिवेश में महिलाओं, पुरुषों और तृतीय लिंग को समान कानूनी अधिकार और सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए, साथ ही पिछड़े ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में विकास को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। जब तक समाज का प्रत्येक वर्ग राष्ट्र निर्माण की मुख्यधारा से नहीं जुड़ेगा, हमारी उन्नति अधूरी रहेगी। सामाजिक सद्भाव और समानता सशक्त राष्ट्र की नींव है।
पर्यावरण संरक्षण हमारी अगली प्राथमिकता है। भारत की पहचान सुजलाम, सुफलाम और षष्ठ ऋतुओं वाली रही है। जिस तीव्रता से भारत सतत विकास कर रहा है, उसी गति से हमें पर्यावरण की चिंता करनी होगी। जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और जलसंकट जैसी वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में भारत को अग्रणी भूमिका निभानी होगी। पर्यावरण संरक्षण टिकाऊ विकास, प्राकृतिक संसाधनों की गुणवत्ता और स्वास्थ्य व्यय में कमी के लिए आवश्यक है। उदाहरण के लिए-भूमि क्षरण भारत के सकल घरेलू उत्पाद को प्रभावित करता है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और वनों का कटाव हमारे भविष्य के लिए खतरा है। हमें ऐसी विकास नीतियाँ अपनानी होंगी, जो पर्यावरण के अनुकूल हों। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। स्वच्छ भारत मिशन और ‘नमामि गंगे’ जैसे अभियान सराहनीय हैं। हमारी प्राचीन संस्कृति में प्रकृति को माता का दर्जा दिया गया है;इस भावना को पुनर्जागृत कर भारत विश्व को पर्यावरण के साथ सामंजस्य का नया मार्ग दिखा सकता है। यह केवल सरकार का नहीं, प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
हमारी अगली प्रतिज्ञा आर्थिक सम्प्रभुता को सशक्त करना है। वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती शक्ति को कई देश स्वीकार नहीं कर पा रहे, जिससे वे अनावश्यक जटिलताएं उत्पन्न कर रहे हैं। विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या होने के नाते हमें आत्मनिर्भरता को अपनाना होगा। आयात कम कर, स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग बढ़ाना चाहिए। आत्मनिर्भर भारत का संकल्प तभी सिद्ध होगा, जब हम अपनी विनिर्माण क्षमता बढ़ाएं और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में निर्णायक भूमिका निभाएं। इसके लिए छोटे और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को तकनीकी सहायता और सुगम वित्तपोषण उपलब्ध कराना होगा। कृषि क्षेत्र में नवाचार और बुनियादी ढांचे में निवेश से ग्रामीण अर्थव्यवस्था सशक्त होगी। जन-धन योजना जैसे प्रयासों से वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना भी आवश्यक है।
दूरदर्शी विदेश नीति भारत को वैश्विक प्रतिष्ठा दिला सकती है। भारत की विदेश नीति ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के सिद्धांत पर आधारित रही है। अब हमें केवल भागीदार नहीं, बल्कि नेता के रूप में उभरना होगा। संयुक्त राष्ट्र और जी-२० जैसे मंचों पर सक्रिय भूमिका निभानी होगी। जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और आर्थिक असमानता जैसे मुद्दों के समाधान में नेतृत्व करना होगा। अपनी आर्थिक और सैन्य शक्ति का उपयोग शांतिपूर्ण तरीके से वैश्विक स्थिरता के लिए करना भारत की प्रतिष्ठा को और बढ़ाएगा। ‘पड़ोसी पहले’ नीति को मजबूत कर पड़ोसी देशों के साथ व्यापार, संस्कृति और सुरक्षा में सहयोग बढ़ाना होगा। आपसी विश्वास और सद्भावना से ही क्षेत्रीय शांति और समृद्धि सुनिश्चित होगी, जो हमें विश्वगुरु बनाएगी।
स्वस्थ राष्ट्र के लिए स्वास्थ्य सेवाएं भी अनिवार्य हैं। भारत के कई हिस्सों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति चिंताजनक है। हमें ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली चाहिए, जो देश के अंतिम गाँव तक सुलभ हो। अस्पतालों, क्लीनिकों और प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मचारियों की उपलब्धता सुनिश्चित होनी चाहिए। स्वास्थ्य बीमा और किफायती इलाज आर्थिक बाधा नहीं बनने चाहिए। स्वस्थ भारत ही सशक्त भारत बन सकता है।
सबसे महत्त्वपूर्ण कदम नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना और भारतीय संस्कृति के प्रति जवाबदेही है। आधुनिकता की दौड़ में हम अपने नैतिक मूल्यों को भूल रहे हैं। भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और स्वार्थ ने हमारी प्रगति को धीमा किया है। भारत को अपनी संस्कृति-सत्यनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा और उत्तरदायित्व को पुनर्जनन करना होगा। यह बदलाव केवल सरकारी स्तर पर नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक के व्यक्तिगत जीवन में आना चाहिए। जब हम अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार होंगे, तभी अपने अधिकारों के लिए प्रभावी ढंग से लड़ पाएंगे। ऐसा समाज जहां प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका महसूस करे, वही हमारी सच्ची स्वतंत्रता होगी।
हमारी वास्तविक स्वतंत्रता का उद्देश्य नवोन्मेषी भारत की प्रतिज्ञा है, जो देश के विकास के स्वप्नों को साकार करने का संकल्प है। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने इसके लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया। जब भारत में ज्ञान-आधारित समाज, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक संप्रभुता, सुदृढ़ विदेश नीति, उन्नत स्वास्थ्य सुविधाएं और उच्च नैतिक मूल्यों से भ्रष्टाचारमुक्त समाज दृढ़ता से स्थापित होगा, तब विश्व दंग रह जाएगा और हमारा अनुसरण करेगा। यही सच्चे अर्थों में हमारी स्वतंत्रता की सार्थकता और नव भारत के उदय का प्रतीक होगा।