हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
************************************
वह ‘जट यमला पगला दीवाना’,
‘गुड्डी’ से मिला ‘चुपके-चुपके’
‘आँखें’, ‘ललकार’, ‘बगावत’, ‘शोले’ ने
बना दिया उन्हें ‘ही मैन।’
कभी बना वह ‘नौकर बीबी का’,
‘राजपूत’, ‘रजिया सुल्तान’, ‘जानी दोस्त’
‘अलीबाबा और चालीस चोर’ या ‘शालीमार’ ने,
बना दिया उन्हें ‘ही मैन।’
‘धरमवीर’ से ‘एक महल हो सपनों का,
‘लोफर’, ‘यादों की बारात’ के ‘जूगनू’ लिए
‘ब्लैकमेल’ कर ‘चला झील के उस पार’ ‘दो चोर’ ने
बना दिया उन्हें ‘ही मैन।’
‘मेरा गाँव मेरा देश’ से ‘मंझली दीदी’ या ‘अनुपमा’,
के साथ ‘फूल और पत्थर’ व ‘काजल’ ‘गजब’ था
‘राजतिलक’ कर ‘राजा जानी’, ‘हकीकत’ देखी,
तभी तो उन्हें बना दिया ‘ही मैन।’
‘राम बलराम’, ‘सीता और गीता’ या ‘प्रतिज्ञा’ से,
‘अपने’ ‘कर्तव्य’ से ‘शराफ़त’ निभाई
‘नया जमाना’ के साथ ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे ने’,
‘जीरो’ को हीरो बना दिया, तभी कहलाए ‘ही मैन।’
‘रेशम की डोरी’ या ‘माँ’ ‘अनपढ़’,
के साथ ‘आई मिलन की बेला’ से
‘दिल ने फिर याद किया’ तभी, ‘प्रोफेसर प्यारेलाल’ यानी धर्मेन्द्र को
दिया गया था पद्मभूषण, जो आज भी
लोगों के दिलों में बने हुए हैं ‘ही मैन॥’
