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अंधों के आगे क्या रोना

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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अंधों के आगे क्या रोना,
क्यूं भैंस को बीन सुनाना
ये अंधे तो मन के अंधे,
आग लगाते गाएं गाना।

देख रहे अपनी आँखों से,
पर नहीं है इनकी दृष्टि
आँखें फैलती लालच से,
आँखें बंद रखे संतुष्टि।

भोली जनता है मजबूर,
जन गण मन इनके हवाले
मोटे पेट झांकते इनके,
छीनते गरीबों के निवाले।

पाँव घिसते उम्र घिस गई,
जेब लूट गई कोर्ट कचहरी
पैसों वालों की न्याय देवी,
इनके लिए अंधी बहरी।

आसमां गरीब की चादर,
जमीं बनी है बिछौना
कुछ नहीं होना जाना,
अंधों के आगे क्या रोना…।

अंधों के आगे क्या रोना…,
बिना रिश्वत काम नहीं है
निचोड़ लेता प्रशासन,
मदद भी परिहास है।

खा रहे घटिया राशन,
भूखे नंगे लूटते लोग
अस्पतालों में मरते यहाँ,
बुढ्ढी का जवान बेटा।

जवान बेटी की बुढ्ढी माँ,
गरीब लाचार की बेटी
उसका बन गई श्राप,
बेटा पढ़-लिख बेरोजगार।

पेंशन को रोता बाप,
सूखी हड्डियों का ढांचा
चिपटा है माँ की छाती,
भरी दुपहरी मजदूरी कर।

रो-रो परिवार चलाती,
गरीब का देखो भविष्य
बच्चे जीते चौराहों पे,
भीख मांगते हाथ फैलाए।

घाव छुपाए पाँवों के,
बिल्डिंगों की छाया में
झोपड़ियां रहती हैं,
कारों से जरा झांक लो।

बेबस कुछ कहती है,
यही सच जग का हर कोना।
अंधों के आगे क्या रोना…,
अंधों के आगे क्या रोना…॥

परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

 

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