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रिश्ते-मर्यादा व खूबसूरती से निभाना सीखो

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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‘मर्यादा’ एक व्यक्तिगत और भावनात्मक सीमा है। यह मनोवैज्ञानिक ढाल के रूप में काम करती है। इस सीमा के पैमाने पर ही हम अच्छे और संतुलित निजी-सामाजिक दोनों तरह के रिश्ते बनाते हैं।
शिशु,जन्म के साथ ही अनेक रिश्तों के बंधन में बंध जाता है और माँ-पिता,भाई-बहन,दादा-दादी,नाना-नानी जैसे अनेक रिश्तों को जीवंत करता है। रिश्तों के ताने-बाने से ही परिवार का निर्माण होता है। कई परिवार मिलकर समाज बनाते हैं और अनेक समाज सुमधुर रिश्तों की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए देश का निर्माण करते हैं। सभी रिश्तों का आधार संवेदना होती है,अर्थात ‘सम’ और ‘वेदना’ यानि कि ‘सुख-दुख’ का मिला-जुला रूप,जो प्रत्येक मानव को धूप-छाँव की भावनाओं से सराबोर कर देते हैं। रक्त सम्बंधी रिश्ते तो जन्म लेते ही मनुष्य के साथ स्वतः ही जुड़ जाते हैं,परन्तु कुछ रिश्ते समय के साथ अपने अस्तित्व का एहसास कराते हैं,लेकिन आज की आधुनिक शैली में,जिंदगी में बहुमूल्य रिश्ते कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि- “जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नहीं है,पर जो रिश्ते हैं उनमें जीवन होना जरूरी है।”
कई बार आपसी रिश्ते जरा-सी अनबन और झूठे अहंकार से क्रोध की अग्नि में स्वाहा हो जाते हैं। रिश्तों से ज्यादा उम्मीदें और नासमझी से दूरियाँ इतनी बढ़ जाती हैं कि हमारे अपने,हम सबसे इतनी दूर आसमानी सितारों में विलीन हो जाते हैं कि,हम चाहकर भी उन्हें धरातल पर नहीं ला सकते हैं और पछतावे के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं आता।
किसी ने बहुत सही कहा है-“यदि आपको किसी के साथ उम्रभर रिश्ता निभाना है,तो अपने दिल में एक कब्रिस्तान बना लेना चाहिए। जहाँ सामने वाले की गलतियों को दफनाया जा सके।”
कोई भी रिश्ता आपसी समझदारी और निःस्वार्थ भावना के साथ परस्पर प्रेम से ही कामयाब होता है। यदि रिश्तों में आपसी सौहार्द,न मिटने वाले एहसास की तरह होता है,तो छोटी-सी जिंदगी भी लंबी हो जाती है। इंसानियत का रिश्ता यदि खुशहाल होगा,तो देश में अमन-चैन तथा ख़ुशियों की फिजा महकने लगेंगी। विश्वास और अपनेपन की मिठास से रिश्तों के महत्व को आज भी जीवित रखा जा सकता है। वरना गलतफहमी और नासमझी से हम लोग,सब रिश्ते एक दिन ये सोचकर खो देंगे कि वो मुझे याद नहीं करते,तो मैं क्यों करुं…-
“कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो,
कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो
रिश्ते तो मिलते हैं मुकद्दर से,
बस उसे खूबसूरती से निभाना सीखो।”

परिचय-गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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