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अद्भुत श्रृंगार

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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कलम की ध्वनि से लिखा है देखिए, मेरा अद्भुत श्रृंगार,
प्रेम रतन धन के समान, मिलता है मुझे साजन का प्यार।

कुदरत का दिया अजब सम्पूर्ण, सुन्दर श्रृंगार है मेरा,
सोना ना चाँदी की जरूरत है, फूलों का हार है मेरा।

हमारा पूर्ण साज-श्रृंगार, हाट ना बाजारों में मिलता है,
पावन पुण्य वसुन्धरा के उपवन में, श्रृंगार खिलता है।

मैं नित्य ही नए फूलों का साज-श्रृंगार किया करती हूँ,
सोना-चाँदी के जैसे, फूलों से श्रृंगार करती रहती हूँ।

हृदय में चाह नहीं रत्न से जड़ित आभूषणों की मुझको,
सदाबहार फूल सुन्दर आभूषणों से सजाता है मुझको।

महल की रानी नहीं कहाती मैं, फिर भी है अद्भुत श्रृंगार,
विश्व सुन्दरी मैं कहाती हूँ, तभी तो साजन करते हैं प्यार।

फूलों से सज-संवर के, मैं रूप-रंग की बन गई शहजादी,
ये आभूषण खोने का डर, ना टूटने का, न होगी बर्बादी।

मैं सखियों की सखी ‘देवन्ती’, गगन की मैं सैर करती हूँ,
आभूषण के लिए बगिया में, सदा फूल को लगाती हूँ॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |

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