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अर्घ्यदान

अरुण कुमार पासवान
ग्रेटर नोएडा(उत्तरप्रदेश)
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दान प्रकृति है मनुष्य की,
वह दान करता है,करना चाहता है।
सुख पाता है दान कर के,कुछ भी;
अपनी औकात के अनुरूप,
जो हो उसके पास,उसके अधिकार में।
कोई धन दान करता है,कोई कन्या,
अग्नि को हवि,सूर्य को अर्घ्य
दरिद्र को अन्न,वस्त्र,
असहाय को सहायता।
नेत्र सहित कई अंगों का भी,
दान करते पाया जाता है लोगों को।
दधीचि ने तो अपनी अस्थियाँ,
दान की थीं,वृत्रासुर के बध के लिए;
पुरु ने किया था यौवन-दान।
कहते हैं कि दान से धन नहीं घटता है,
यश-कीर्ति-सम्मान में वृद्धि ही होती है
तरह-तरह के दान से।
ज्ञान-दान कर गुरु ईश्वर सरीखे हो जाते हैं,
अभय-दान और क्षमा-दान का भी,
प्रचलन देखा ही है हमने।
रक्षा कर्म में लगे लोग,तैयार रहते हैं,
जीवन दान,बलिदान के लिए;
पन्ना धाय ने तो राजकुल-दीपक की,
रक्षा के लिए अपने कुल-दीपक का
अद्वितीय,बेशकीमती दान दिया था,
लेकिन दान की महत्ता और अभिप्राय से
अनभिज्ञ लोग,कुछ ऐसे दान में
करते हैं विश्वास,
जिनसे उनका कोष तो
पूरी तरह भर जाता है,
उस दान के बदले,
ख्याति भी मिलती है उन्हें,
पर कुख्याति;क्योंकि,
दान करने के लिये वो जिस धन को चुनते हैं,
वो हैं:क्रोध,ईर्ष्या,पीड़ा,दमन,दु:ख,दर्द,अपमान;
और ईश्वर उन्हें लौटाते हैं
उनके दान का कई गुना धन,
वही धन जो उन्होंने दान किया होता है।
अहंकार,मिथ्याभिमान त्याग कर
प्रेम,स्नेह,दया का दान नहीं किया जिसने,
धर्म-कर्म का आडम्बर उसे क्या उबारेगा ?
पुराणों में कथा मिलती है कि,
ईमानदारी के साथ जीवन-यापन के लिए
मांस का व्यापार करने वाले कसाई,
और पतिव्रता पत्नी की महत्ता
तप-बल से,अपने क्रोध से पक्षी को
भस्म कर देने वाले तपस्वी से,
बहुत-बहुत अधिक होती है।
क्यों न हम भी सूर्यदेव को,
अर्घ्यदान कर कामना करें कि
वो हमें प्रेम,स्नेह,सहानुभूति,दया,
मानवता और सद्व्यवहार का
अकूत धन दें,
जिनका दान कर
बने रहें हम सच्चे दानी,सच्चे धनी॥

परिचय:अरुण कुमार पासवान का वर्तमान निवास उत्तरप्रदेश के ग्रेटर नोएडा एवं स्थाई बसेरा जिला-भागलपुर(बिहार)में है। इनकी जन्म तारीख १७ दिसम्बर १९५८ और जन्म स्थान-भागलपुर है। हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री पासवान ने ३ विषय में एम.ए.(इतिहास,हिंदी व अंग्रेज़ी) और विधि में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्य क्षेत्र-सहायक निदेशक, कायर्क्रम सेवा(सेवानिवृत्त-आकाशवाणी)का रहा है। कविता,कहानी,नाटक,लेख में निपुण श्री पासवान के नाम प्रकाशन में-पितृ ऋण (गद्य),अल्मोड़ा के गुलाब (काव्य संग्रह),७ सम्पादित काव्य संग्रह,३ पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित है। आप एक पत्रिका के सह-सम्पादक होने के साथ ही पोर्टल पर लेखन में सक्रिय हैं। लेखन का उद्देश्य-साहित्य सेवा और पसंदीदा हिंदी लेखक-निराला,दिनकर हैं। आपके लिए प्रेरणापुंज- दिनकर हैं। देश और हिंदी भाषा पर आपकी राय-“भारत सामाजिक समन्वय में विश्वास रखता रहा है। इसकी सांस्कृतिक विरासत का कोई सानी नहीं है। हिंदी भाषा को भारतीय संस्कृति की परिचायक और प्रतिनिधि भाषा कहना उपयुक्त होगा। सहिष्णुता हिंदी भाषा का प्रधान चरित्र है।”

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