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आओ मिलकर

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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रचनाशिल्प:मात्रा भार २४

आओ मिलकर एक नया संसार बसायें,
झूठे जग में पौध प्यार की एक लगायें।

देख रहा हूँ लोभ और लालच की दुनिया,
बैर आपसी क्षोभ अमानवता की दुनिया
रंजिश ने सबके मन में डाला है डेरा,
कत्ल खून हिंसा का सब में हुआ बसेरा।
सबके मन से आओ ये दुर्भाव हटायें,
आओ मिलकर एक नया संसार बसायें॥

अगर एक हों पतझड़ में भी फूल खिला दें,
मुरझायी बगिया को भी फिर से महका दें
भटक चुके हैं सत्य मार्ग से आज सभी जो,
सच की राहों पर चलना उनको सिखला दें।
खत्म करें अँधियार ज्ञान का दीप जलायें,
आओ मिलकर एक नया संसार बसायें॥

लगे टूटने रिश्ते आपस में कट-कट के,
अलग हुए माँ-बेटे के रिश्ते बँट-बँट के
भाई-भाई आपस में हैं लहू बहाते,
मीठे-मीठे बोल पीठ पर छुरी चलाते।
प्यार बढ़ा कर आपस में रहना सिखलायें,
आओ मिलकर एक नया संसार बसायें॥

आज हवा में ज़हर भरा है सावधान हो,
जंग खत्म हो इसका कोई प्रावधान हो
ढका हुआ आकाश है जहरीले धुएँ से,
मरते हैं निर्दोष खड़े होते रोएँ से।
बहती आँखों से श्रद्धा के फूल चढ़ायें,
आओ मिलकर एक नया संसार बसायें॥

परिचय–शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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