एल.सी.जैदिया ‘जैदि’
बीकानेर (राजस्थान)
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आदमी को आदमी की,अब जरुरत नहीं है,
मिलने की जरा-सी किसी को फुर्सत नहीं है।
कितनी सीमित-सी हो गई है,दुनिया हमारी,
सोचें हम जितना उतनी तो खूबसूरत नहीं है।
काम से काम,दिखावा,बस यही सब शेष है,
बेजान रिश्तों में चाह की अब हसरत नहीं है।
पास से गुजर के भी लोग नज़र नहीं मिलाते,
मौकापरस्त लोगों की अच्छी शरारत नहीं है।
बदलना तो हमको ही होगा मुहब्बत के लिए,
बदलना चाहे अगर तो बड़ी ये कसरत नहीं है।
कोई लाख हम से अदावत रखे ‘जैदि’ मगर,
हम चोट पंहुचाएं ऐसी हमारी फितरत नहीं है॥