जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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मिट्टी का घर कांप रहा है,पानी ढो-ढो थके पनारे।
तीखी वर्षा के हमलों से,रोते पाये छान उसारे॥
दुश्मन दिखती तेज हवाएं,बरखा अब दहशत फैलाये,
धरती पर पानी ही पानी,डूबे गाँव गली चौबारे॥
नदी क्षेत्र में गाँव हमारा,नीची बस्ती तरफ किनारा,
रूह कांपती देख देख कर ,नदिया खड़े हिलोरे मारे।
आले-खिड़की सब गीले हैं,गद्दे बिस्तर सब सीले हैं,
बस्ती खुद से पूछ रही है,आन बसे क्यों नदी किनारे।
बाबू की बकरी भूखी है,गैया बिन चारा सूखी है,
बूढ़ी अम्मा कोस रही है,रुठ गए क्या राम हमारे।
लाजो कैसे लाज बचाये,भीगे वस्त्र सुखा ना पाये,
लल्ला तेज बुखार चढ़ा है,जा नहीं पाएं चिकित्सक द्वारे।
पेशानी पर चढ़ा पसीना,बरखा ने तोड़ा है जीना,
पानी घुसा तबेले में भी,फँसे हुए हैं पशु बिन चारे।
काले-काले मेघ डरावें,बिजरी गरज-गरज दहलावे,
ऊपर वाले की करनी को,किसकी हिम्मत कौन नकारे।
माना धरती ने धन पाया,झोपड़ियों ने मोल चुकाया,
‘हलधर’ सदा गरीबों को ही,ऊपर वाला क्यों ललकारे॥