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आज़ादी के बाद

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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गणतंत्र दिवस विशेष….

हर शख्स सोचता है,
हमें क्या मिला ?
कभी ये नहीं सोचता कि
हमनें दिया क्या ?

जन्मों की ग़ुलामी से,
जब हम आज़ाद हुए तो
भूल गए ग़ुलामी का दर्द,
जिस आज़ाद महल में
आज हम बैठे हैं,
उसकी नींव में
कितने शहीदों के
बलिदान दबे हैं।

हमें तो कृतज्ञ,
होना चाहिए
उन वीर जवानों का,
जिनकी बदौलत
आज हम,
आज़ादी की
साँस ले रहे हैं।

देश तो आज़ाद हो गया,
पर क्या हम
आज़ाद हुए ?
अपनी संकीर्ण मानसिकता से,
अपने दूषित विचारों से
ज़रा सोचिए,शायद नहीं…।

कहाँ है वो हिंदुस्तान ?
जिसे सोने की,
चिड़िया कहते थे
दूसरों पर मत,
थोपो अपना दोष
कहीं न कहीं,
हम ख़ुद ज़िम्मेवार हैं
अपनी इस,
दयनीय स्थिति के लिए।

बांट दिया है हमने ही,
कई टुकड़ों में इंसानों को
कोई हिन्दू,कोई मुस्लिम,
कोई सिख तो,कोई ईसाई
कहाँ गया हिंदुस्तानी ?

भूल गए देश के प्रति,
अपनी कृतज्ञता
अपना कर्तव्य,
जी रहे हैं सब
अधिकार भावना से।

बात करते हैं हम,
आज़ादी के बाद क्या मिला ?
बहुत कुछ मिला पर हमें,
सहेजना नहीं आया
समेटना नहीं आया,
कौन सोचता है देश के लिए ?
सभी अपने-अपने,
फ़ायदे की बात करते हैं।

स्वार्थी लोग,
अपने निजी स्वार्थ के लिए
फिर से बेच रहे हैं,
अपने देश की आज़ादी।

हर कोई जी रहा है भय में,
बच्चियां भी कहाँ सुरक्षित ?
आधुनिकता के नाम पर,
भटक रही है युवा पीढ़ी
माँ-बाप के लिए,
ज़गह नहीं है घरों में,
वृद्धाश्रम अब
बुजुर्गों का घर बनता जा रहा है।

बुजर्गों को तिरस्कार,
टूटती रिश्तों की डोर
संस्कारहीन बच्चे,
कोई भी तो
ऐसा क्षेत्र नहीं बचा,
जिसने अपने
निजी स्वार्थ के लिए,
मानवता को न बेचा हो।
अगर यही आज़ादी है तो,
ख़ुदा ख़ैर करें…!!

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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