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‘माँ’ पृथ्वी का नूर

डॉ.अशोक
पटना(बिहार)
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यह पृथ्वी का नूर है,
करूणा की खान है।

जगत -जननी माँ,
पृथ्वी पर श्रेष्ठतम महान है।

तू ही तू है एक सुंदर अनमोल,
तेरा नहीं है जग में यहां कोई मोल।

तेरे पैर की यह धुरी है,
जन्नत की सुबह-शाम।

सब-कुछ सूना-सूना है,
जग में नहीं दिखता कोई आयाम।

तू है ज़िन्दगी का एक खूबसूरत उपवन,
तेरे बिना है जग में हरपल एक सूनापन।

बचपन की श्रद्धा तेरी रही है यहां अपार,
माँ तेरा जोड़ नहीं,सबसे उन्नत जैसे उपहार।

तेरे दूध का कर्ज नहीं चुका सकता यहां कोई,
हर काल में तेरा मूल्य नहीं लौटा सकता कोई।

माँ के प्यार में बच्चे रंग जाते हैं,
माँ के बिना सब सूनापन पाते हैं।

भूखी रहकर वह बच्चों को खिलाती है,
बच्चों को कभी भूखा न सुला पाती है।

मन्नत हजार वह मांगकर इठलाती है,
इस कारण माँ जो खूब माँ कहलाती है।

माँ के प्यार की सीमा है अपार,
इसके बिना है सूना सब संसार।

जन्नत की नूर को दें हम यहां सम्मान,
माँ का हम-सब कभी करें न अपमान॥

परिचय-पटना(बिहार) में निवासरत डॉ.अशोक कुमार शर्मा कविता,लेख,लघुकथा और बाल कहानी लिखते हैं। आप डॉ.अशोक के नाम से रचनाकर्म में सक्रिय हैं। शिक्षा एम.काम.,एम.ए.(राजनीति शास्त्र,अर्थशास्त्र,हिंदी,इतिहास, लोक प्रशासन एवं ग्रामीण विकास) सहित एल.एल.बी., एल.एल.एम.,एम.बी.ए.,सी.ए.आई.आई.बी. व पीएच-डी.(रांची) है। अपर आयुक्त (प्रशासन)पद से सेवानिवृत्त डॉ. शर्मा द्वारा लिखित अनेक लघुकथा और कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं,जिसमें-क्षितिज, गुलदस्ता,रजनीगंधा (लघुकथा संग्रह)आदि है। अमलतास,शेफालीका,गुलमोहर,चंद्रमलिका, नीलकमल एवं अपराजिता (लघुकथा संग्रह) आदि प्रकाशन में है। ऐसे ही ५ बाल कहानियाँ(पक्षियों की एकता की शक्ति,चिंटू लोमड़ी की चालाकी एवं रियान कौवा की झूठी चाल आदि) प्रकाशित हो चुकी है। आपने सम्मान के रूप में अंतराष्ट्रीय हिंदी साहित्य मंच द्वारा काव्य क्षेत्र में तीसरा,लेखन क्षेत्र में प्रथम,पांचवां,आठवां स्थान प्राप्त किया है। प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर के अखबारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं।

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