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इतना बवाल न मचाएं,हिंदी सबकी

डॉ.साकेत सहाय

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शिक्षा नीति २०१९ के प्रारुप पर भाषा को लेकर बवाल………

हिंदी आजादी के बाद से ही नेतृत्व की कुबुद्धि की वजह से अंग्रेजी से पराजित होकर भारतीय भाषाओं की सौतन बनकर उभरती है। भले वह सौतन हो या नहीं। समस्या यह भी है हिंदी को लेकर कई काल्पनिक धारणाएं मौजूद हैं,जिनसे किसी का भला नहीं होने वाला। क्षणिक राजनीति को यदि छोड़ दें तो भी हिंदी का जिन नेताओं ने,लोगों ने,नौकरशाही ने पूर्व में विरोध किया,उन्हीं लोगों ने इसकी मलाई भी खूब काटी। हिंदी को लेकर तमाम लोग इनमें वैसे भी लोग शामिल हैं,जिन्हें वैसे तो हिंदी का क ख ग नहीं आता,पर बात जब विरोध की आती है तो ये लोग भाषा विशेषज्ञ बन जाते हैं। और वो भी हिंदी पढ़ते हैं अपनी जरूरत से।
दरअसल समस्या न राजनीतिक है,न सामाजिक बल्कि लोगों को भड़का कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की है।
मेरे विचार से हर सरकार हिंदी का दोहन करती है। हिंदी के बल पर सत्ता पाती हैं। फिर उसे उसकी हालत पर छोड़ देती हैं। दरअसल,हिंदी और इस देश के गरीबों की हालत एक है,जो स्वयं के बल पर आगे बढते हैं। हिंदी सबकी है। यह उत्तर भारत की भाषा नहीं है। यह पूरे भारतवर्ष की भाषा है। इसीलिए,यह ईसा पूर से ही कभी पाली,प्राकृत,अपभ्रंश,ब्रज,दक्खिनी,हिंदुस्तानी तथा आधुनिक हिंदी के रूप में व्यापक अभिव्यक्ति का जरिया है। हिंदी एवं भारतीय लोक भाषाओं में अदभुत शाब्दिक समानता है,पर इस छद्म लोकतांत्रिक समाज में इसे कौन समझाए कि हिंदी सबकी है। जहां न लोक के लिए,जगह न तंत्र के लिए,सब कुछ सत्ता है।
भाषा लोक को पाने का अदभुत जरिया है,पर इसकी याद केवल चुनाव के वक्त आती है(यहां भाषा से मेरा पर्याय हिंदी से है।)l
हिंदी को लेकर दो तर्क दिए जाते हैं-
-हिंदी उत्तर भारतीयों की भाषा है। मेरे विचार से यह तथ्य गलत है। इस देश में कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि हिंदी उसकी मातृभाषा है। सबकी अपनी मातृभाषा या बोली है। हिंदी उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से लेकर पश्चिम तक सभी लोकभाषाओं का सम्मिश्र रूप है। इसीलिए,इसे हर भारतीय जल्दी सीख लेता है।
-हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है-तो यह तर्क भी गलत है। संविधान सभा ने सर्वसम्मति से हिंदी को इसीलिए राजभाषा घोषित किया क्योंकि,यह व्यापक रूप से राष्ट्रभाषा थी। राजभाषा किसको घोषित किया जाता है,यह सब जानते हैं।
अंत में हिंदी को लेकर इतना बवाल न मचाएं,हिंदी सबकी है। हाँ, हम सभी अपनी भाषाओं का सम्मान करें,क्योंकि हिंदी विरोध के नाम पर हम कहीं न कहीं अंग्रेजी का समर्थन करते हैं। मेरे भारत का विकास भारतीय भाषाओं में निहित है,और हिंदी इसमें अग्रणी है।
एक पुरानी बात,मगर फिलहाल मौजूं है-
“महात्मा गांधी का रोज हम अपमान करते हैं,जब हिंदी को रौंद
कर अंग्रेजी को तरजीह देते हैं।”

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुम्बई)

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