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अंधेरी है रात..

विजय कुमार
मणिकपुर(बिहार)

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अंधेरी है रात
हम भटक गए हैं बाट,
छूट गया है साथ
बहुत बड़ी हो गई रात।

कौशिक बोल रही है
बिजली चमक रही है,
बादल गरज रहे हैं
चारों तरफ शोर मचा है।

भयानक-सी है रात
कैसी हो गई बात,
पग-पग कठिन है बाट
घनघोर लग रही है रात।

टिम-टिमटिमाते हैं जुगनू
खुल रहा है राज,
काली दिख रही है रात
अब क्या होगा मेरे साथ ?

पसीना शरीर से आया
मन बहुत घबराया,
मंजिल तक हमें बढ़ाया
लक्ष्य तक पहुँचाया।

अंधेरी है रात,
हम भटक गए हैं बाट,
छूट गया है साथ…
बहुत बड़ी हो गई है रात॥

परिचय-विजय कुमार का बसेरा बिहार के ग्राम-मणिकपुर जिला-दरभंगा में है।जन्म तारीख २ फरवरी १९८९ एवं जन्म स्थान- मणिकपुर है। स्नातकोत्तर (इतिहास)तक शिक्षित हैं। इनका कार्यक्षेत्र अध्यापन (शिक्षक)है। सामाजिक गतिविधि में समाजसेवा से जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता एवं कहानी है। हिंदी,अंग्रेजी और मैथिली भाषा जानने वाले विजय कुमार की लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक समस्याओं को उजागर करना एवं जागरूकता लाना है। इनके पसंदीदा लेखक-रामधारीसिंह ‘दिनकर’ हैं। प्रेरणा पुंज-खुद की मजबूरी है। रूचि-पठन एवं पाठन में है।

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