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ईंट-पत्थर के जंगलों से बचाना होगा प्रकृति को

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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सब ‘धरा’ रह जाएगा (पर्यावरण दिवस विशेष)…

भीषण गर्मी से हर तरफ हाहा-कार मचा हुआ है। इस वर्ष की गर्मी ने सारे कीर्तिमान तोड़ दिए हैं। मनुष्य छाँव की तलाश में परेशान हो रहा है, ठंडक जहाँ पर मिले, वहाँ अच्छा लगता था, पर शहर का हाल देखें तो रोना आता है। पेड़ों की छाया दूर की कौड़ी हो गई है। पर्यावरण दूषित हो रहा है, शुद्ध हवा की तलाश जारी है, पर इन दिनों वह कहाँ मिलेगी ? दरअसल, हम लोगों की जरा-सी लापरवाही आज बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है। तापमान के बढ़ते मानक से जीना मुश्किल हो गया है।
हमें अगर अपना व आने वाले समय का भविष्य उज्जवल करना है तो पेड़ लगाना ही चहिए। यह अच्छी बात है, पर उन लगाए हुए पेड़-पौधों की देखभाल भी करने की जवाबदेही हम सभी की होनी चाहिए। पौधरोपण कार्य की शिक्षा बचपन से विद्यालयों में दी जानी चाहिए, क्योंकि बचपन में प्रकृति पर्यावरण संरक्षण की जानकारी भविष्य में बहुत ही उपयोगी साबित होगी। हजारों पेड़-पौधे सिर्फ विशेष दिनों में लगाए जाते हैं, पर उनमें से कितने पेड़ बन पाते हैं, इसका हिसाब- किताब भी रखना जरुरी है, ताकि प्रदूषण की समस्या, आक्सीजन के लिए दर-दर भटकना व भीषण गर्मी में छाँव की तलाश के लिए फिर भटकना नहीं पड़े। इसलिए जो भी संगठन, संस्थान और सामाजिक कार्यकर्ता सहित धार्मिकता के सजग प्रहरी जो पौधरोपण कार्य करते हैं, पेड़ लगाते:हैं, उन्हें १०-२० दिन में उस स्थल पर सेवा कार्य करना चाहिए, जिससे सच्चे पर्यावरण प्रकृति हितैषी कहलाएंगे। भारत भूमि में धरती को माँ कहते हैं, तो इसका दोहन नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि पेड़-पौधे लगाना ही चहिए, क्योंकि यह हम सभी का फर्ज है। आखिर कब तक इन ईंट-पत्थरों के जंगलों से प्रकृति को दूषित करते रहेंगे ? बहुत देर हो चुकी है, अब तो जागना ही होगा। पर्यावरण के संरक्षण की नींव को मजबूत करते हुए हमें पेड़-पौधों को लगाना ही चहिए, तभी हम सच्चे पर्यावरण प्रेमी व प्रकृति के हितैषी बन पाएंगे। धूल-धुएं से पर्यावरण दूषित है, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से धरती बंजर भूमि ना हो जाए इसलिए हमें अपनी धरती पर वृक्षारोपण का कार्य करना ही होगा। यह हमारा कर्तव्य भी है और धर्म भी। शहर में बड़ी-बड़ी इमारतें, मॉल जरूर बन गए हैं, पर यह विकास का दुष्प्रभाव ही कहा जाएगा कि, जो मूक पेड़-पौधों की बलि लेने के बाद बनाई जाती है। हमने कुछ साल पहले ही देखा था कि, आक्सीजन के लिए सब कितना परेशान हो रहे थे, पर हम उससे भी कुछ सीख नहीं ले सके। अभी भी हम नहीं जागे तो फिर बहुत देर हो चुकी होगी। इसलिए पर्यावरण-प्रकृति को हरा-भरा बनाना होगा, पेड़-पौधों को लगाकर उनकी देखभाल भी करनी होगी, तभी हम अच्छी व सकारात्मक ऊर्जा पाएंगे, साथ ही शुद्ध प्राणवायु भी पा सकेंगे और धरती भी इतनी नहीं तपेगी।