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ईश्वर कण-कण में

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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ईश्वर और मेरी आस्था स्पर्धा विशेष…..

वे रश्मि वर्षा करते हैं,
धन आंनद का भरते हैं
भर आस्था प्यार पुकारे,
पास खड़े श्याम हमारे।

क्षिति पावक गगन समीरा,
व्यापित दस दिशि थल नीरा
आज्ञा बिन पात न डोले,
जग सारा हरि गुण बोले।

शोर और सन्नाटा में,
फूल पात और काँटा में
ईश्वर कण-कण बसते हैं,
आस्था में ही दिखते हैं।

इक ज्योत पुंज इक आशा,
हरि समझे मन की भाषा
सुख-दु:ख प्रभु नाम अधारा,
दे निर्बल प्रेम सहारा।

आस्था में ही है सोना,
आस्था में ही है खोना
जहां नहीं है प्रभु आस्था,
बन्द वहाँ सारा रास्ता॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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