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आशियाँ

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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जब सुवर्णी भोर आती है,
बादल झुंड कहीं छुप जाता है
जब भी नीरव पवन गाती है,
और जब बारिश नहीं भाती है
तब भी अच्छे लगते हैं मुझे,
मेरे घर अब गौरैया चहचहाती है।
छज्जे,रोशनदान,खिड़की,
कभी ग्रिल और जाली बीच
कुछ सूखे पत्ते-कचरा लिए,
कचरा नहीं,थोड़ा-सा ईंट-गारा टीन-टप्पर
इक आशियाँ तैयार करती है।
क्या कमाती कैसे खाती…मालूम नहीं,
कहां जाती है पता नहीं पर
जाते-जाते अपने घर की रखवाली,
मुझे सौंप जाती है पूरे भरोसे से।
मैं कैसे साफ करने दूँ जिसे कचरा,
कहते हो वो आँगन है
नन्हें-मुन्ने चहकते हैं-खेलते हैं,
जिसे महीनों से बनाते देखती रही।
नहीं रहने दो अभी,
रहने दो कुछ और सँगीत सुन लूँ
रहने दो कुछ और मीत चुन लूँ।
रहने दो कुछ और सपने बुन लूँ,
रहने दो,एक कविता-सी गुन लूँ॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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