कुल पृष्ठ दर्शन : 333

You are currently viewing उबारना होगा

उबारना होगा

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

***********************************

नफरत की विचारधारा से,
दुनिया को उबारना होगा।
दिल, दिमाग, मन, बुद्धि, चित्त को,
दलदल से निकालना होगा॥

जब तक तुष्टिकरण जारी है,
तब तक प्रतिभा कुंठित होगी
न्यायालय में हमले होंगे,
न्याय व्यवस्था धूमिल होगी।
आर्तनाद करने वाले जब,
सिंहनाद करने लग जाएं
फैली हुई महामारी जब,
घायल की औषधि बन जाए।
भौतिकता की भाग-दौड़ से,
मानव को उबारना होगा॥
दिल, दिमाग, मन, बुद्धि, चित्त को,
दलदल से निकालना होगा…॥

कितने कष्ट, वेदना कितनी ?
कितना यह धरती सहती है
चीख-चीख कर के अपने ही,
बेटों से अब यह कहती है।
क्या यह ही है फर्ज ? और,
क्या यह ही कर्तव्य तुम्हारा।
झूठ, कपट, छल, छद्म, द्वेष से,
ग्रस्त हुआ है मुल्क हमारा।
सज्जनता को दुर्जनता के,
शोषण से उबारना होगा॥
दिल, दिमाग, मन, बुद्धि, चित्त को,
दलदल से निकालना होगा…॥

अरमानों की चिता जल रही,
विश्वासों का अंत हो रहा
सूख गए संवेदन के स्वर,
क्रांति वीर असहाय हो रहा।
हवा चल रही है संकट की,
आयातित टेक्नोलॉजी से
वक्तव्यों से शासन चलता,
समझौते की कुटिल नीति से।
दुर्व्यसनों के दुराधिपत्य से,
जनता को उबारना होगा॥
दिल, दिमाग, मन, बुद्धि, चित्त को,
दलदल से निकालना होगा…॥

गिरजाघर में सुरंग बिछी है,
गुरुद्वारे तलवार चल रही
मंदिर में टोपे दगती हैं,
मस्जिद में बारूद बिक रही।
जख्म एक, दो नहीं यहाँ तो,
पूरा जीवन ही छलनी है।
थाह ले रहे रत्नाकर की,
फिर भी प्यास नहीं बुझनी है
जहरीले जज्बातों से अब,
मजहब को उबारना होगा॥
दिल, दिमाग, मन, बुद्धि, चित्त को,
दलदल से निकालना होगा…॥

पग-पग पर अवरोध बहुत हैं,
जाति, पंथ, मजहब ने घेरा
छल, प्रपंच, पाखंड, झूठ से,
छाया चारों ओर अंधेरा।
मानवता अब ऊब गई है,
घृणा, द्वेष से, रक्त-पात से
निर्ममता, कठोरता, शोषण,
उत्पीड़न घातों-प्रघात से।
आतंकी पंजों से अब तो,
पीड़ित को उबारना होगा॥
दिल, दिमाग, मन, बुद्धि, चित्त को,
दलदल से निकालना होगा…॥

पीड़ा, पतन, पराभव, पातक,
हद से ज्यादा लगे गुजरने
व्यक्ति, समाज, संगठन, सहचर,
सब ही जड़ से लगे उजड़ने।
लोभ, मोह, मद, स्वार्थ प्रकृति ने,
नैतिकता को किया कलंकित
क्रूर, कुटिल, षडयंत्र, चक्र से,
सत्य, सनेह, शील, आतंकित।
जन-प्रतिनिधियों को निश्चित ही,
अपना रुख सुधारना होगा॥
दिल, दिमाग, मन, बुद्धि, चित्त को,
दलदल से निकालना होगा…॥

नेता, अभिनेता, उपदेशक,
सारे नाच रहे अधनंगे
शील, सभ्यता के आँगन में,
रंग भर रहे हैं भदरंगे।
बिलख रही है राष्ट्र चेतना,
न्याय तंत्र आसू पीता है
जनता भ्रमित समझ ना पाती,
छद्म वेश नेता जीता है।
जनता मालिक लोकतंत्र की,
उसको ही संवारना होगा॥
दिल, दिमाग, मन, बुद्धि, चित्त को,
दलदल से निकालना होगा…॥

परिचय–प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।