सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
**************************************
एक बार की बात बताएँ,
रचा दक्ष ने यज्ञ एक था
दिया निमंत्रण सबको केवल,
शिव जी का बस नाम नहीं था।
पता चला जब गौरी जी को,
मन में उनके इच्छा जागी
मात-पिता घर पर यज्ञ हो रहा,
शंकर जी से अनुमति माँगी।
बोले शिव जी देखो देवी
पिता ने तुमको नहीं बुलाया
फिर भी यदि तुमको है जाना,
कुछ सेवक संग में ले जाना।
दक्ष यज्ञ में गयीं भवानी,
शिव का कहना वो नहीं मानी
देखा शिव का भाग नहीं था,
उनको ये स्वीकार नहीं था।
शिव अपमान न वे सह पायीं,
वहीं यज्ञ में प्राण गँवायीं
ज्ञात हुआ त्रिपुरारी को जब,
हाहा-कार हुआ प्रचंड तब।
बिना वजह के झूम रहे थे,
सती का शव लिए घूम रहे थे
सृष्टि-नाश न होने पाए,
इसीलिए श्री विष्णु जी आए।
लगा समाधि शिव जी बैठे,
शान्त हो गया जलनिधि जैसे
कन्या रूप लिया गौरी ने,
जन्म लिया हिम के आँगन में।
दोनों ने फिर ब्याह रचाया,
शिव जी ने फिर सती को पाया।
मिलन हुआ शिव-शक्ति का फिर से,
सब देवों ने पुष्प-प्रेम बरसाया॥