श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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तेजप्रतापी अयोध्या के राजा श्री दशरथ जी की मैं भार्या,
मैं महारानी कैकेयी श्री दशरथ जी की सबसे प्यारी हूँ भार्या।
समय की चक्रगति में पड़ कर, की मैंने बहुत बड़ी गलती,
दुर्भाग्य टांग कर ले गया मुझे, जहाँ मेरी खो गई सुमति।
मन में पछता रही हूँ बहुत, पुत्र राम को देकर वनवास,
महाराज दशरथ को तनिक नहीं थी, मुझसे ऐसी आस।
हँस कर राम सिया वनवास गए, तब मुझे हुआ एहसास,
मुझ कैकेयी-सी जगत में नारी ना होगी, ना होगी सास।
मैं रानी कैकेयी, खुद के व्यवहार से समाज से गिर गई,
दासी के चलते अखंड सुहाग से, अब मैं विधवा बन गई।
कौशल्या नंदन राम, परिवार सहित सबके वे प्यारे थे,
पुत्र राम माता-पिता भाइयों सबकी, आँखों के तारे थे।
मैं रानी कैकेयी, राज सिंहासन के लालच में निर्दयी हो गई,
ना अयोध्या की, ना कैकय देश मैं, कहीं की नहीं रह गई।
सीता जैसी पुत्रवधू पा के, पुत्रवधू की खुशी नहीं मिली,
मैं कैकेयी का दुर्भाग्य, समय में मौत भी मुझे नहीं मिली॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |