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ऐसी भी मजबूरी कैसी

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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दो शब्द नेह के लिखे हैं लेकिन,शायद ही पढ़ पाओ तुम।
साजन याद बहुत आती है,जैसे हो आ जाओ तुम॥

पाती में ही कब तक बोलो,शब्दों का संसार लिखूँ।
संग बिताए थे पल हमने,क्या उनका आभार लिखूँ॥
टूट गए जो ख्वाब हे साजन,फिर से आन सजा जाओ।
साजन याद बहुत आती है,जैसे हो तुम आ जाओ॥

महल अटारी चौबारे सब,सूने-सूने लगते हैं।
उपवन के सब पुष्प पुराने,बड़े सुहाने लगते हैं॥
छज्जे पर राह निहारूँ कब तक,आकर प्यास मिटा जाओ।
साजन याद बहुत आती है,जैसे हो तुम आ जाओ॥

चित्र और चिंतन में आऊँ,ऐसा हाल हुआ है मेरा।
कैसे नींद तुम्हें आती है,कैसे होता रोज सवेरा॥
ऐसी भी मजबूरी कैसी,सजना अब सुलझा जाओ।
साजन याद बहुत आती है,जैसे हो तुम आ जाओ॥

परिचय-ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है।आप लगभग सभी विधाओं (गीत, ग़ज़ल, दोहा, चौपाई, छंद आदि) में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।आप वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं ,पर बैंगलोर  में भी  निवास है। आप संस्कार,परम्परा और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश-धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। आपका मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य है,परन्तु लगभग ७० वर्ष पूर्व परिवार उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १ जुलाई को १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम.भी वहीं हुई है। आप ४० वर्ष से सतत लिख रहे हैं।काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं आपने लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर आप कई बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं। आप आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं। कर्नाटक राज्य के बैंगलोर निवासी श्री  अग्रवाल की रचनाएं प्रायः पत्र-पत्रिकाओं और काव्य पुस्तकों में  प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जनचेतना है।  

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