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अब कमान राष्ट्रपति के हाथों

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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यदि इस २९१९ के चुनाव में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिल जाए और एक स्थिर सरकार बन जाए तो भारतीय लोकतंत्र के लिए इससे बढ़िया बात तो कोई हो ही नहीं सकती। वह सरकार पिछले पांच साल की सरकार से बेहतर होगी,ऐसी आशा हम सभी कर सकते हैं। एक तो वह अपनी भयंकर भूलों से सबक लेगी,दूसरे, इस बार विपक्ष जरा मजबूत होगा। वह भी कान खींचने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। इस दूसरी अवधि में प्रचार मंत्री प्रधानमंत्री बनने की पूरी कोशिश करेंगे। जहां तक विपक्षी दलों का सवाल है, उनके धुआंधार और आक्रामक प्रचार के बावजूद किसी दल ने ऐसा दावा करने की हिम्मत तक नहीं की है कि वह सरकार बना पाएगा। ऐसा दावा तो जाने दीजिए,किसी ने यह भी नहीं कहा है कि वह सबसे बड़ा दल बनकर उभरेगा। यदि सारे विरोधी दल मिलकर बहुमत में आ जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा। हो सकता है कि भाजपा को २०० के आस-पास सीट मिलें और २०१४ की तरह अपने दम पर सरकार बनाने में वह सफल न हो। ऐसे में क्या होगा ? ऐसे में भारतीय लोकतंत्र की कमान मोदी या राहुल या ममता या मायावती के हाथ में नहीं होगी। वह होगी,भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों में। जब किसी का भी स्पष्ट बहुमत नहीं होगा तो वे किसी को भी प्रधानमंत्री की शपथ दिला सकते हैं और उसे एक सप्ताह या एक मास का समय दे सकते हैं कि वह लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करे। वे ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री की शपथ दिलवाना चाहेंगे,जो लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध कर सके और बाद में पांच साल तक सरकार चला सके। यह जरुरी नहीं है कि वह सबसे अधिक सीटें जीतनेवाली पार्टी के नेता को ही यह मौका दें। वे कह सकते हैं कि आप तो हारे हुए हैं,जनता द्वारा रद्द किए हुए हैं। आपको दुबारा मौका क्यों दूं ? बासी कढ़ी को चूल्हे पर फिर क्यों चढ़ाऊं ? उस पार्टी के नेता राजीव गांधी की तरह खुद ही प्रधानमंत्री की दौड़ से बाहर भी हो जा सकते हैं। ऐसे में उस पार्टी के किसी दूसरे नेता को मौका देने के बात भी राष्ट्रपति सोच सकते हैं। राष्ट्रपति कम सीटों वाली किसी अन्य पार्टी के नेता को भी शपथ दिला सकते हैं और उससे सदन में शक्ति-परीक्षा करवा सकते हैं,जैसे भाजपा के अटलबिहारी वाजपेयी को राष्ट्रपति डाॅ.शंकरदयाल शर्मा ने मौका दिया था। तात्पर्य यह कि अस्पष्ट बहुमत की स्थिति में राष्ट्रपति का पद,जिसे ध्वजमात्र समझा जाता है, सबसे अधिक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली बन जाता है। उनका स्वविवेक ही यह तय करेगा कि अगले पांच साल में भारत के लोकतंत्र की दशा और दिशा कैसी होगी ?

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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