कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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राह में हमारी आने वाली कठिनाइयों से,
नित नया ज्ञान हमें, सीखना जरूरी है
उंगली उठाए यदि, कोई मातृभूमि पर,
क्रोधवश मुट्ठियों को, भींचना जरूरी है।
देश का विकास पूर्ण, चाहते हैं आप यदि,
नित-नए स्वप्न हमें, देखना जरूरी है।
अपने समाज में जो, दिख रही है बुराई,
कविता की पंक्तियों में, लिखना जरूरी है॥