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वर्तमान में विश्व राजनीतिक गुरु कृष्ण के उद्देश्यों की प्रासंगिकता

राधा गोयल
नई दिल्ली
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आज के युग में कृष्ण के उद्देश्यों की सबसे अधिक आवश्यकता व प्रासंगिकता है।जरासंघ ने कितने ही राजाओं को बंदी बनाया हुआ था। श्री कृष्ण ने उन सबको जरासंघ की कैद से मुक्त किया। सभी को ससम्मान उनका राज्याभिषेक करके उनका राज्य लौटाया, जबकि वे चाहते तो उन सभी राज्यों को अपने अधीन करके उन राजाओं से कर वसूल कर सकते थे, किंतु उन्होंने न उनके राज्य पर अपना अधिकार जताया और न ही उनसे किसी प्रकार का कर वसूल किया।अपने माता-पिता और नाना को बन्दी गृह से मुक्त कराया। स्वयं मथुरा के सिंहासन पर विराजमान नहीं हुए, अपितु वह नाना को सौंप दिया। नरकासुर ने १०० राजकुमारियों और रानियों को बंदी बनाया हुआ था जिन्हें श्री कृष्ण ने छुड़ाया था। उनको पिता व पतियों ने स्वीकार नहीं किया और जब वे सब समाधिस्थ होने के लिए जा रही थीं, तो श्रीकृष्ण ने उन सबसे विवाह करके उन्हें समाज में सम्मान से जीने का अधिकार दिया। न जाने लोगों द्वारा उन्हें किन किन नामों से पुकारा गया, पर उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि लोग उनकी कितनी निंदा करते हैं। उन्हें केवल एक स्वस्थ समाज के निर्माण की परवाह थी। वे एक नव युग के निर्माता थे।
कुछ लोग कहते हैं कि वह तो भगवान थे। उन्हें तो सब कुछ पहले से ही मालूम था, तो यह सब लोगों के दिमाग की उपज है। कोई भी व्यक्ति अपने अच्छे कामों के कारण बाद में भगवान माना जाता है। ऐसा कितने ही महान लोगों के साथ हुआ है। जिन्हें आज हम भगवान कहते हैं, अपने जीवन काल में उन लोगों ने न जाने कितने कितने अपमानों को झेला है। शिशुपाल ने श्री कृष्ण का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

श्रीकृष्ण ही थे जिन्होंने राजसूय यज्ञ में लोगों के पैर धोने का जिम्मा उठाया और आज भी लोग श्रीकृष्ण की मिसाल देकर उस काम को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। अपने आपको छोटा नहीं समझते हैं।
श्रीकृष्ण ने सभी को यह भी समझाया कि समाज में शांति व्याप्त रहे, लेकिन यदि कोई अड़ियल व्यक्ति या राष्ट्र… शांति के सारे ही प्रयासों को विफल कर दे, तो फिर उसे सबक सिखाना भी आवश्यक हो जाता है। यदि कोई आपको…शालीनता को…कायरता समझ ले तो उसे यह बताना भी आवश्यक हो जाता है कि आप कायर नहीं हैं, अपितु आप शांति चाहते हैं। नरसंहार नहीं चाहते थे, न कि इसलिए कि उनमें शक्ति नहीं है। कहा भी गया है-
“क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,
उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत सरल हो।”
आज की राजनीति में विदुर नीति, कृष्ण
नीति और चाणक्य नीति की बहुत अधिक जरूरत है, क्योंकि आज भी महाभारत काल की तरह से राजनेता अपने-अपने स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हुए हैं। काश कोई कृष्ण पैदा हो और देश को सही दिशा दिखाए।
योगेश्वर श्रीकृष्ण की समस्त लीलाएँ अन्याय और अत्याचार का नाश करने के लिए ही हुईं। दुनिया का प्रथम सत्याग्रही, प्रथम समाजवादी, प्रथम अवज्ञा आंदोलन कर्ता श्रीकृष्ण को माना जा सकता है। माखन चोर कहें या मटकी फोड़ कहें, लेकिन उनका दर्शन स्पष्ट था। मेहनत करने वाले का संसाधनों पर पहला हक है। उन्हें मत बैंक की चिंता नहीं थी, वरना वे भी आज के राजनेताओं की तरह संसाधनों पर मेहनतकश लोगों की बजाय एक जमात का पहला हक बताते। यह उनका सत्याग्रह था अथवा अवज्ञा आंदोलन, इसका फैसला स्वयं कर सकते हैं कि उन्होंने अपने ग्वाल-बाल सखाओं सहित उस क्षेत्र से बाहर जा रहे दही माखन की मटकी फोड़कर कंस के अन्याय और भ्रष्टाचार का विरोध किया था।
इस दृष्टि में श्रीकृष्ण प्रथम धरतीपुत्र भी कहे जा सकते हैं। उन्होंने लीलाओं से ‘भागो मत, मुकाबला करो और स्वयं के भाग्यविधाता बनो’ का संदेश दिया, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक एवं सार्थक है।
अन्याय, अव्यवस्था से त्रस्त लोगों को याद रखना होगा कि कृष्ण तुम्हारे अंदर बैठे हैं। कभी उसे जगाकर तो देखो। अन्याय कहाँ बच पाएगा ?
यह कार्य सभी को ठीक उसी प्रकार से करना है जैसे इंद्र के अहंकार को तोड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी अंगुली पर गोवर्धन उठा लिया था, लेकिन आम जनता में विश्वास उत्पन्न करने के लिए सभी से अपनी-अपनी लाठी लगाने के लिए कहा था।यही श्रीकृष्ण की दूरदर्शिता और कूटनीति थी कि सभी ग्वालों में चेतना का संचार हुआ और इंद्र का घमंड चूर-चूर हो गया। आज भी स्वयं को श्रेष्ठ और शक्तिशाली समझने वालों के दंभ को तोड़ने के लिए सभी को एकजुट होना होगा।
श्रीकृष्ण का सच्चा उत्तराधिकारी वही है जिसमें कृष्ण चेतना का ऐसा जागरण हो, जो अपने चहुँ ओर बहुसंख्या में व्याप्त अर्जुनों के विषाद को भी दूर भगा सके।


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