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कैसे नैया पार हो

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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कैसे नैया पार हो, कृपा सिन्धु बिन तोर।
हे जगदीश्वर शरण दे, ज्ञान ज्योति दे मोर॥

तू सर्जक पालक जगत, महिमा अपरंपार।
कैसे नैया पार हो, तू ही तारणहार॥

कैसे नैया पार हो, नश्वर इस संसार।
लोभ घृणा मिथ्या कपट, रोग मनुज लाचार॥

अहंकार ऐसा नशा, मतवाले इन्सान।
कैसे नैया पार हो, बिना कृपाभगवान॥

हे हरि हर विधि लेख प्रभु, करो मुक्त जग पाप।
कैसे नैया पार हो, बिन पौरुष संताप॥

सतरंगी अरुणिम किरण, खिलो खुशी मुस्कान।
सराबोर समभाव मन,मानवता इन्सान॥

काम क्रोध पद मोह अब, जला रहा इन्सान।
कैसे नैया पार हो, भक्ति बिना भगवान॥

हे दिनकर हिय भास्कर, काश्यपेय अरुणाभ।
मिटा सकल विष तम हृदय, भर परहित यश लाभ॥

नीति न्याय सच आचरण, कलियुग में सब नष्ट।
कैसे नैया पार हो, मनुज चरित जब भ्रष्ट॥

महाकाल कलि काल शिव, सत्य चारु कर लोक।
मंगलमय नव उषा बन, हर आलस तम शोक॥

कर रंगीला प्रेम हिय, हरि पद भक्ति गुलाल।
नवधा नारी रूप में, प्रेम शक्ति खुशहाल॥

मातृशक्ति करुणा दया, सहनशीलता धर्म।
दो हरि मन संवेदना, जानूँ नारी मर्म॥

खिले प्रगति तनया कुसुम, गेह वधू सम्मान।
प्रेम डोर बंधे बहिन, दो हरि यह वरदान॥

प्रेम रोग रंगीन जग, सहयोगी सम्बन्ध।
अपनापन चहुँ अरुणिमा, रिश्ते प्रीत सुगन्ध॥

बासन्ती मधु फागुनी, जले होलिका पाप।
विजय रंग प्रह्लाद सम, हरिहर हर अभिशाप॥

नर-नारी सर्जक जगत, जीवन रंग सुहान।
सिंचित है संस्कार से, सदाचार ईमान॥

कैसे नैया पार हो, फॅंसा लोभ संसार।
हे त्रिदेव तुम आसरा, परमारथ पतवार॥

हम नैया तू खबैया, तुम खुशियाँ नवरंग।
तोड़ नशा मद पद विभव,पौरुष भरो उमंग॥

रंगरसिया माधव चरण, भरो भक्ति रस भाव।
राधा-रानी प्रीत भज, मिटे क्लेश विष घाव॥

सीता मिथिला जानकी, अवध वधू श्रीराम।
प्रेम भक्ति भज मैथिली, रंग अवधिया धाम॥

होली संस्कृति शुभ मिलन, मिथिला अवध महान।
रघुपति जामाता मुदित, पा सिय मैथिल शान॥

राधा गोरी हरिप्रिये, रंग लगायी गाल।
अब तो सुन तू मुरलिया, जोगीरा सुर मधुशाल॥

देख यशोदा लाल मुख, खिली खुशी मुस्कान।
नंदलाल नटवर नयन, देख नंद सुख भान॥

रंगीला होली नशा, आप्लावित ब्रजधाम।
भरो रंग समरस प्रभो, नर नारी अविराम॥

कैसे नैया पार हो, विश्वबन्धु बिन भाव।
होली सद्भावन कहाँ, मन मुकुन्द बिन छाव॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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