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जल बिन धरती सून

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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ज से जल जीवन स्पर्धा विशेष…

आजा बादल आज तू,जल बिन धरती सून।
तुझे पुकारे ये जहाँ,पादप वृक्ष प्रसून॥

देखो हाहाकार है,तड़प रहे हैं लोग।
मानसून अब आ गिरो,शीघ्र बना दो योग॥

जीव-जन्तु-मानव सभी,करे प्रार्थना आज।
शीतल जल वर्षा करो,बन जाये सब काज॥

घिरते बादल आज तुम,करो तेज बरसात।
जन-जीवन खुशहाल हो,बने सभी की बात॥

टर्राते मण्डूक भी,पक्षी तरसे प्यास।
चातक भी अब मौन है,स्वाति बूँद की आस॥

हे जलधर जल जीव सब,तड़प रही है मीन।
जल बिन जलती है धरा,हुए सभी हैं हीन॥

बूँद-बूँद अनमोल है,रखना इसे सम्हाल।
जहर घोल देना नहीं,बने नहीं फिर काल।।

स्वच्छ रखो पर्यावरण, हरा-भरा हो देश।
पानी से सबका भला,मिट जाता है क्लेश॥

जल बिन धरती जल रही,होवे व्याकुल लोग।
जल की रक्षा सब करो,होगा सुन्दर योग॥

पानी की हर बूँद में,दुनिया रही समाय।
करो नहीं बर्बाद तुम,नहीं लौट के आय॥

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