परिसंवाद….
इंदौर(मप्र)।
विविधता के नाम पर खलनायक को महामंडित, गौरवान्वित करना गलत है। रावण आतंक का पर्याय था। उसकी लंका आतंकी प्रायोजक एवं निर्यातक थी। वह किसी की रक्षा के लिए नहीं थी। रावण वह है, जिसके कारण समाज और देश में दुर्बलता आती है।
वैश्विक ज्ञानधारा मंच के तत्वावधान में स्व. शंकरप्रसाद दीक्षित द्वारा रावण पर आधारित रचित महाकाव्य ‘रक्षेन्द्र पतन एवं रावण के व्यक्तित्व तथा उत्थान-पतन’ पर आयोजित परिसंवाद कार्यक्रम में सेवानिवृत्त आईएएस मनोज श्रीवास्तव ने मुख्य अतिथि के रूप में यह बात कही। श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति, इंदौर में श्री श्रीवास्तव ने कहा कि, रावण नाम इसलिए पड़ा कि वह तीनों लोकों को रुलाता था। उन्होंने कहा कि रामकथा की कोई अक्षय धुरी नहीं है, जिसके कारण कोई भी उसकी किसी भी रूप में व्याख्या कर देता है, जो स्वीकार्य नहीं है।
इस अवसर पर डॉ. प्रभुनारायण मिश्र, डॉ. राजकिशोर वाजपेई और अमित चावला ने भी विचार प्रस्तुत किए। संचालन मधुलिका शुक्ला ने किया। आभार राजीव गुप्ता ने माना।