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खिल उठा मन का मौसम

बबीता प्रजापति 
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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मन में कई ख्यालात आते हैं,
यादों के मौसम में बरसात लाते हैं
बरसात के बाद का,
आलम न पूछो
आज खिल उठा है,
मेरे मन का मौसम।

कभी दूर पहाड़ों में जा बसा,
कभी खिलते फूलों से महक उठा
कभी रुई से बादलों को पकड़ता,
आज तुमसे मिल गया है
मेरे मन का मौसम।

सिंदूरी आसमान में,
मयस्सर लौटे पंछी
हवाओं में घुली है,
महक सौंधी-सौंधी
पकड़ने को बादलों को,
मचल उठा है।
मन का मौसम,
मेरे मन का मौसम॥

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