सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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उनकी ख़ुश्बू बसी-बसी है अभी।
शाख़े उल्फ़त हरी-हरी है अभी।
यूँ तो हँसने को हँस रहा हूँ पर,
दिल की ह़ालत बुझी-बुझी है अभी।
कैसे कह दूँ सुकून है दिल को,
दिल की धड़कन बढ़ी-बढ़ी है अभी।
डर से मूज़ी वबाओं के या रब,
ख़ल्क़ सारी डरी-डरी है अभी।
जाने कब वो सुनेंगे इस दिल की,
उनके लब पर अभी-अभी है अभी।
उनकी जलवागरी के सदक़े में,
बज़्मे अन्जुमं सजी-सजी है अभी।
कौन गुज़रा ‘फ़राज़’ गुलशन से,
मेह़वे ह़ैरत कली-कली है अभी॥