श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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जहाँ बहती हैं गंगा, चलती है नाव,
वही तो है हमारा प्यारा प्यारा गाँव।
जहाँ बरगद, पीपल देते ठंडी छाँव,
वहीं आम महुआ से, सजा है गाँव।
चलो चलते हैं, लौटकर अपने गाँव,
चलो करेंगे फिर सफर, लेकर नाव।
चलो बुलाती है सबको बसंती हवा,
चलो मिटाते हैं रोग, बिन खाए दवा।
मिलूँगा सभी, पुराने सखा-सखी से,
कहूँगा दिल की बातें उन सभी से।
मिलूँगा गले, अपने सखा-सखी से,
देखूँगा उसे, बनी है बहना राखी से।
वन्दन करूँगा, मैं अपने बुजुर्गों को,
नमन करूँगा मैं, अपने पितरों को।
चरण स्पर्श करूँगा अपने गाँव को,
वन्दना है, गौ, हल-बैल, किसान को।
जहाँ बुजुर्ग हुक्का पीते, बैठ आम की छाँव,
यही ‘देवन्ती’ की कविता में, गंगा किनारे मेरा गाँव॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |