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खो जाने दो

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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खो जाने दो हमें गुमराहियों के अंधेरे में,
वाहवाहियों की हमें कोई दरकार नहीं
नहीं चाहिए हमें ऐसी ख्याति विख्याती,
लोक मंगल का हो जिसमें विचार नहीं।

कहां खोए रहे हर क्षण छिछले से शब्द न्यास में,
बेकार वह बात जिसमें गरिमा का अधिभार नहीं
नफरत भली है उस दिखावटी प्रेम से भी कहीं,
जिसमें हकीकत का हो लेश मात्र भी दीदार नहीं।

सजानी नहीं है जिन्दगी की महाफिलें हमें,
खुशामदी के रंग-बिरंगे बनावटी फूलों से
फिल्मी किरदारी प्रेम की है चाह ही कहां ?
जिन्दगी जीना चाहते हैं प्यार के उसूलों से।

कमबख्त यह जीवन भी बदलता है रंग,
हर रोज बस मौसम के मिजाज की भांति
सुकून से जीने ही नहीं देता है किसी को भी,
जिन्दगी की उहापोह में है ही कहां शान्ति।

रंगीनियों की तलबगार रही है हमेशा से,
छिछोरे से पन की वह मदहोश वासना
प्रेम पूजा है,जरूरत है,रहम है,इबादत है,
प्रेम तो खुद ही है उस खुदा की उपासना।

सब जानते हैं लोग,लेकिन फिर भी न जाने क्यों ?
जहां में नफरतों और वासनाओं का जहर घोलते हैं जिधर भी देखो,
उधर ही एक अजीब-सी मदहोशी है,
अब तो लोग प्रेम को भी रूप और दौलत से तौलते हैं।

तौल कर जो किया जाता है जी तराजुओं में,
वह प्रेम ही कहां फिर वह तो सौदा होता है
प्रेम तो लिखी इबारत है किस्मत की माथे पे,
जिसके अक्षरों में जिन्दगी का मसौदा होता है।

बस एक अजीब-सी घुटन है हर किसी के भीतर,
बिरले ही हैं कोई जो दिल का हर राज खोलते हैं
है अधूरे प्रेम की आज भी लाखों कहानियाँ यहां,
पर मजाल है कि कोई किसी से कुछ बोलते हैं।

गुजर जाती हैं जिन्दगियां सच्चे प्रेम की तलाश में,
नसीब कहां ? मिल जाए तो खुद को खो जाने दो।
मन मसोसकर घुट-घुट के जीने से बेहतर तो यह है,
कि खुद को खुदा की इबादत से प्रेम में रो जाने दो।

मुमकिन नहीं है हर किसी की जिंदगी में,
पवित्र प्रेम का यूँ मुकम्मल मिल जाना।
अहोभाग ही होता है वह तब जिंदगी का,
जीवन सरोवर में प्रेम पंकज खिल जाना॥

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