शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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मुद्दा:भारत बनाम इंडिया और हिंदुस्तान….
भाषा परिवर्तन और शब्दों की अनुभूति ही भाषा को नए आयाम प्रदान करती है। कुछ समय पहले ‘महाराज’ शब्द अपने शासकों के समय में प्रतिनिधित्व करता था और होटल में भोजन बनाने वालों, कतिपय ज्ञानी पंडित या किसी कला में निपुण प्रसिद्ध कलाकार आदि के सम्मान में संबोधन अर्थ में प्रयोग होता रहा है।
दिन सबके बदलते हैं, भारत के भी दिन अभी ओर बदलेंगे। कल तक जो फर्राटे से अंग्रेजी बोल ऐंठते थे, वे अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सरकार के प्रावधान से नि:शुल्क हिंदी पढ़ना, बोलना व लिखना सीख (जबकि भारत में अन्य विदेशी भाषाएं सीखने के लिए मोटी रकम चुकानी होती है।) रहे हैं। भारत के विभिन्न नाम अपने समय का प्रतिनिधित्व करते हैं- ‘आर्यावर्त’ कहते ही आर्य संस्कृति उभर आती है और ‘हिंदुस्तान’ कहते ही मुस्लिम शासकों से परिचित हो जाते हैं तो ‘इंडिया’ कहते ही अंग्रेजी गुलामी की जंजीरों में बंध जाते हैं और ‘भारत’ कहते ही वैदिक कथाओं में वर्णित नाम शकुन्तला- दुष्यन्त के पुत्र ‘भरत’ के नाम से गर्व अनुभूत करते हैं।
पर्यायवाची और समानार्थी शब्दों से हिंदी भाषा अपने समय के हर स्वरुप को अपनी दक्षता से परिभाषित करती है।
‘हिंदी दिवस’ सरकारी कार्यालयों में हिंदी में कामकाज हेतु कार्यालयीन शब्दों से जुड़ा है और सरकारी हिंदी का ‘राजभाषा’ शब्द से नेतृत्व करता है।
स्मरण रहे कि, हिंदी को ‘राजभाषा’ का दर्जा दिलाने के लिए उस समय के संसदीय साहित्यकारों ने बहुत ही पचड़े झेले हैं, चाहे वे रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हों या राजर्षि टंडन। संसद के भोजनालय में १ रुपए की चाय पीते हुए बहुत-सी बहसें व मनमुटाव भी हुए और आखिर में ‘दिनकर’ के अनुसार हिंदी को ‘राजभाषा’ का दर्जा देने में सहमति हुई।
संसदीय क्षेत्र में विरोध करना एक सार्वभौमिक सत्य है, जो कभी सत्य के आटे को घुन की भांति पीसता है और कभी सत्य के आटे में नमक मिलाकर स्वाद भी देता है। ‘भारत’ या ‘भारतवर्ष’ कहने पर देश के नागरिकों को आपत्ति क्यूं है ? या मात्र राजनीतिक समीकरण तलाशने का एकमात्र प्रावधान…! शिक्षित भारतीय जनता को इस पर विचार करना होगा-
‘अनादि काल से इतिहास युद्धों से लिप्त है,
‘भारतभूमि’ हृदय से रक्तरंजित है।’
मत भूलो! गलतियाँ सुधारने के लिए अवसर ‘अमृतकाल’ युगों में एक ही बार आता है।’
गर्व से कहें कि, “हम भारतीय हैं और जननी संस्कृत की पुत्री हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है।” देश का ‘भारत’ नाम अपने श्रेष्ठ गुणों का प्रतीक है और अपनी विरासतीय नियति का अनुगामी है।