राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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चौक में बेठी देख रही मैं,
रस्साकसी बच्चों का खेल
जर्जर रस्सी टूट गई,
चुप बैठे सब,ज्यों हुई जेल
टूटी रस्सी मैंने गाँठ बांध दी,
फिर से शुरू हो गया खेल
गाँठ बांध लें हम सद्भाव की,
बिछड़ों में हो जाए मेल।
एक गाँठ विवाह का गठजोडा कहलाए,
दो अजनबियों को एक बनाए
दो परिवारों का मेल मिलाएं,
सात जन्म का वादा करते
मरते दम तक साथ निभाएं।
एक गाँठ मन में पलती है,
त्रास ही जीवन में भरती है
मन की गाँठ खोल दे मितवा,
कह कर मन हल्का करती है।
एक गाँठ रक्षासूत्र कहलाती,
भाई-बहिन का त्योहार मनाती
रक्षाबंधन वह कहलाती,
पहले पंडित राजा,यजमानों को बांधते
अब महिलाएं पेड़ों को बांधतीं,
घर-परिवार की सुख-समृद्धि की दुआ मांगती।
आजकल गठबंधन की सरकार आती है,
सीढ़ी लगा एक-दूजे पर चढ़ जाती है
फायदे के लिए देती एक-दूसरे को धक्का,
और फिर चुपचाप आगे बढ़ जाती है।
गाँठ बांध लें प्रेम की,मन निर्मल हो जाए,
नफरत मिट जाए धरा से नेह बरस जाए।
समरसता का पाठ सर्वत्र पढ़ा जाए,
‘जियो और जीने दो’ सब ओर नजर आए॥
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।