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गुजरता हुआ वर्ष

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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नया उजाला-नए सपने…

वर्ष का गुजरना,
महज, अंकों का
बदलना मात्र नहीं है बल्कि…
गुजरते हुए वर्ष के पास,
सारे माह छोड़ जाते हैं
अपनी कोई न कोई याद, बात, वस्तु
कभी कोई पूरा नहीं जाता।
थोड़ा सा जरूर रह जाता है,
हर माह में
कभी यादों में,
मिठास या कड़वाहट बनकर…
कभी सावन की बारिश,
कभी कुंआर की उमस
कभी पतझड़,
कभी वसन्त बहार बनकर
कभी फाग में होली के रंग बनकर,
कभी जेठ की तपन, तो कभी आषाढ़ की बारिश बनकर।
रह जाते गुजरते पल,
ऐसे ही कई दफा
कोई याद रहता है…
देहरी पर बंधनवार सजाते,
आँगन में अल्पना बनाते हहुए
गुलाब की ठंडाई परोसते और,
टेसू के रंग बिखरते हुए…
कई रह जाते युवाओं के इंद्रधनुष,
बनते और बिगड़ते हुए।
क्योंकि, यादें अच्छी हो या बुरी,
वर्ष के गुजरते वक्त का
सच्चा दस्तावेज कही जाती है,
गुजरते वर्ष के पास गिरवी
रखी जाती है वो तमाम,
ऐसी खुशनुमा यादें भी।
जिनके सहारे पूरा जीवन,
बसर हो जाता है…गुजरते वर्ष…॥

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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