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‘गेहूँ’ से नुकसान बताना मतलब ‘पूर्णिमा’ को ‘अमावस्या’ कहना

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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भारत वर्ष १५ अगस्त १९४७ को जरूर स्वतंत्र हुआ है, पर हम अभी भी पश्चिमी सभ्यता की मानसिक गुलामी में जी रहे हैं। अन्न गेहूँ हम प्राचीन काल से उपयोग और उपभोग कर रहे हैं, उसको अमेरिका के तथाकथित चिकित्सक खाने से मना कर रहे हैं। इसी प्रकार हमारी चिकित्सा भी अमेरिका-ब्रिटेन के शोधों पर आधारित हैं। ऐसा क्यों ? जो द्रव्य या खाद्य जिस जलवायु, वातावरण में उत्पन्न होती है, वह उस देश के निवासियों के लिए लाभकारी और हितकारी होती है।
हम मानसिक रूप से पश्चिमी देशों के गुलाम हैं। उनके द्वारा जो मानदंड और मापदंड स्थापित किए जाते हैं, हम उसे सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। विशेष रूप से स्वास्थ्य के साथ अधिक खिलवाड़ किया जा रहा है। उनके मानदंड भारतीय संविधान जैसे संशोधानतक हैं, जैसे-रक्तचाप-मधुमेह के मापदंड दवा निर्माताओं के अनुसार परिवर्तनशील किए जाते हैं, जो हमारे देश के लिए घातक हैं। ऐसे ही गेहूँ को नुकसानदायक बताना वैसा ही है, जैसे- पूर्णिमा को अमावस्या कहना।
सामाजिक जनसंचार पर इन दिनों एक संदेश प्रसारित हो रहा है। इसमें बताया जा रहा है कि, गेहूँ और इससे बने उत्पादों को खाने से मोटापा, मधुमेह और हृदय से जुड़े रोग हो रहे हैं। इसमें अमरीकी हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. विलियम डेविस की किताब ‘व्हीट बैली’ के हवाले से कहा गया है कि, गेहूँ और इससे बने उत्पादों को खाने से बचना चाहिए। इससे लोग असमंजस में हैं कि, गेहूँ खाना चाहिए या नहीं ? कुछ लोग इसे सही मान रहे हैं, तो कुछ गलत भी करार दे रहे हैं।

डॉ. डेविस ने लिखा है कि गेहूँ से बने उत्पादों को खाते हैं, तो शरीर कमजोर हो जाता है। इस कारण कई तरह की शारीरिक परेशानियाँ-जैसे हदय रोग, उच्च रक्त चाप, मधुमेह और मोटापा आदि का खतरा बढ़ता है। ‘व्हीट बैली’ (गेहूँ से तोंद) किताब में डॉ. डेविस के अनुसार गेहूँ में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा अधिक होती है। इसलिए कम मात्रा में भी गेहूँ के उत्पाद जैसे रोटी या ब्रेड खाते हैं तो इससे भी शर्करा का स्तर अचानक से बढ़ता है। किताब में दावा किया गया है कि गेहूँ में एक प्रोटीन ‘ग्लीएडिन’ भूख को बढ़ाता है। अधिक भोजन लेने के कारण समस्याएं हो रही हैं।
डॉ. डेविस की बात केवल परिकल्पना जैसी ही है। यह कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है। गेहूँ ऐसा खाद्य पदार्थ है, जिसे सभी लोग खाते हैं। ऐेसे में २०-३० साल के अध्ययन के बाद कोई निष्कर्ष निकलता है, तो उसको मानना चाहिए। इस किताब में आनुवंशिक रूपांतरित गेहूँ की बात की जा रही है, लेकिन इस पर भी कोई अध्ययन नहीं हुआ है। सबको मालूम है कि, शरीर की ऊर्जा के लिए कार्बोहाइड्रेट बहुत जरूरी है तथा गेहूँ इसका प्रमुख स्रोत है। इसमें फाइबर और प्रोटीन भी भरपूर मात्रा में होता है, जो शरीर के सम्पूर्ण विकास के लिए जरूरी है।
इसमें किए गए दावे बिल्कुल सत्य नहीं हैं । गेहूँ से नहीं, बल्कि हमारी खराब जीवन-शैली से मोटापा आदि बीमारियाँ हो रही हैं। गेहूँ छोड़ने की जगह अच्छी दिनचर्या पर ध्यान दें।
यदि बात करें गेहूँ की तो, महज १ फीसदी आबादी को गेहूँ की एलर्जी होती है। ऐसे लोगों को ही गेहूँ से बने उत्पाद न खाने की सलाह दी जाती है, बाकी जरूरत के अनुसार खा सकते हैं।
विश्वभर में गेहूँ आहार का मुख्य हिस्सा है। ऐसे में यह कहना गलत है कि गेहूँ से रोग हो रहे हैं। हाँ, इसके उत्पाद ज्यादा मात्रा में खाने से परेशानी हो सकती है। डॉ. डेविस कार्बोहाइड्रेट की बात कर रहे हैं, जबकि दूसरे अनाजों में भी यह होता ही है। गेहूँ से शरीर को कई फायदे हैं। गेहूँ शरीर में रक्तचाप के साथ ग्जूकोज स्तर और पाचन ठीक रखता है। पेट के कैंसर से बचाव करता है। १०० ग्राम गेहूँ में करीब १२ ग्राम फाइबर पाया जाता है, जो पाचन को बेहतर करने में मदद करता है।
वास्तव में पश्चिमी देशों द्वारा अपनी खोजों में जो धन व्यय किया जाता है, उसकी प्रतिपूर्ति हमारे जैसे देशों के ऊपर खोजों के निष्कर्षों से भय पैदा कर अपनी सामग्री की खपत करना है। उनके द्वारा ही रासायनिक खादों का निर्माण कर हमारे देश की कृषि को बर्बाद किया गया है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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