प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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चल चला चल, चल पथिक,
तू चल चला चल
राह में कितने रोड़े होंगे,
उन सबको तुझे ढोने होंगे
तुझे हार नहीं मानना है,
जीवन पथ पर चलना है।
मुश्किलों से भरी पड़ी यह डगर है,
सुख और दु:ख का यहाँ घर है
जिस तरह सूरज उगता, ढलता है,
यह जीवन सुख और दु:ख ढोता है
माना कि पथ में बहुत अंधेरा है,
तुझे हार मान नहीं बैठना है।
तुझे मुश्किलों ने घेरा है,
अपनी मंजिल तक पहुंचना है।
जीवन चलने का नाम है,
जो रुका, वह मृतक समान है।
रख हौंसला, फिर बढ़ चल,
तू चल चला, चल पथिक तू चल…॥