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जैसा भगवान चाहें

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

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“बापू प्यास लगी है। मेरा गला सूखा जा रहा है। अब मुझसे,चला नहीं जा रहा है।”
छ:साल की बेटी,अपने पिता को डबडबाई ,आँखों से कातर स्वर में कहती है। उसके पिता नन्हीं बेटी को,सांत्वना और भरोसा देते हैं कि-“बिटिया बस सामने झोपड़ी दिख रही है। वहां हमें पीने के लिए पानी मिल जाएगा। शायद कुछ खाने को भी, मिल जाए। तुम हिम्मत मत हारो। हमें बहुत दूर तक चलकर, अपने गाँव जाना है।”
नन्हीं बच्ची अपने माता-पिता के साथ, ‘कोरोना’ विषाणु के डर के कारण अपने गाँव पैदल ही पहुँच जाना चाहते थे।
माता-पिता मजबूर थे। उनके पास सामान का बोझ था और वे चाहकर भी बच्ची को गोद में नहीं उठा सकते थे। झोपड़ी के पास आने पर उन्हें निराशा प्राप्त हुई। वहां कोई भी नहीं था।
कुछ देर सभी बैठकर अपनी थकान मिटाने लगे। यह सोचकर कि किसी की,कोई मदद मिल जाए,परंतु वाह री किस्मत ? ना कोई व्यक्ति नजर आया,ना ही कोई चिड़िया का बच्चा। हाइ-वे की सूनी सड़क,चौड़ी-सी.. ना कोई पेड़,ना फल,ना कोई छाँव…ऊपर से भीषण गर्मी।
पत्नी बोली-“गुड़िया के बापू,इसकी तबीयत ठीक नहीं है। तेज बुखार है इसे,भूखे -प्यासे हमें और कितना चलना होगा ?”
पति ने जवाब दिया-“क्या पता केतकी, किस्मत को क्या मंजूर है। हमारे पास पैसा रहता तो,हम भी ट्रक में बैठ जाते। ठेकेदार ने दो माह काम करवाया और बिना पैसा दिए भाग गया। सोचता हूँ कि हमें वहीं रहना था। हम कितना पैदल चल सकते हैं इस स्थिति में। बहुत से लोग थे वहाँ। हमें दूसरों के बहकावे में नहीं आना चाहिए था ? वे तो चले गए और हमारा साथ छोड़ गए। किसी तरह हम गाँव पहुँच भी गए,तो क्या होगा ? गाँव में सभी सुविधाएं क्या हमें मिल ही जाएगी ? अब तो जैसा भगवान को मंजूर होगा,वही होगा।”

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

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