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चाय का जायका

डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
मनेन्द्रगढ़ (छत्तीसगढ़)
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ठिठुरती सर्दियों में जब मिल जाए,
एक गरमा-गरम कड़क चाय की प्याली
तो सचमुच अप्सरा लगे घरवाली।

साथ में गर हो कुरकुरे पकौड़े की थाली,
और तीखी चटनी टमाटर वाली
तो क्या कहने!
मीठी-सी लगे उसकी हर बोली।

इस गरम चाय की चुस्की में,
प्यार से कूटा अदरक और
श्रद्धा की तुलसी जब पड़ती है,
मिट्टी की प्याली में छानी गई
चाय में सौंधी-सी जो खुशबू है
वाह! वो स्वाद निराला है।

यारों-दोस्तों के साथ,
चाय का जो दौर चले
उसमें कभी खुशियों की धूप,
कभी दर्द की छाँव
कभी जीत की आशा,
कभी हार की निराशा।

लगता है बस यही है,
जीवन की नई परिभाषा
दोस्त पढ़ लेते हैं,
हमारे मन की भाषा।

ये चाय भी बड़ी अजीब चीज है,
जो हर पल रिश्ते बनाती है
कुछ कड़वी यादें भुलाती है।

क्योंकि इस चाय के जायके में,
सिर्फ फीकी-मीठी,
कड़क चाय ही नहीं होती।
कुछ पल सूकून और प्यार के
भी जुड़े होते हैं॥

परिचय- शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापक (अंग्रेजी) के रूप में कार्यरत डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती वर्तमान में छतीसगढ़ राज्य के मनेन्द्रगढ़ में निवासरत हैं। आपने प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर एवं माध्यमिक शिक्षा भोपाल से प्राप्त की है। भोपाल से ही स्नातक और रायपुर से स्नातकोत्तर करके गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (बिलासपुर) से पीएच-डी. की उपाधि पाई है। अंग्रेजी साहित्य में लिखने वाले भारतीय लेखकों पर डाॅ. चक्रवर्ती ने विशेष रूप से शोध पत्र लिखे व अध्ययन किया है। २०१५ से अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय (बिलासपुर) में अनुसंधान पर्यवेक्षक के रूप में कार्यरत हैं। ४ शोधकर्ता इनके मार्गदर्शन में कार्य कर रहे हैं। करीब ३४ वर्ष से शिक्षा कार्य से जुडी डॉ. चक्रवर्ती के शोध-पत्र (अनेक विषय) एवं लेख अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय पत्रिकाओं और पुस्तकों में प्रकाशित हुए हैं। आपकी रुचि का क्षेत्र-हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला में कविता लेखन, पाठ, लघु कहानी लेखन, मूल उद्धरण लिखना, कहानी सुनाना है। विविध कलाओं में पारंगत डॉ. चक्रवर्ती शैक्षणिक गतिविधियों के लिए कई संस्थाओं में सक्रिय सदस्य हैं तो सामाजिक गतिविधियों के लिए रोटरी इंटरनेशनल आदि में सक्रिय सदस्य हैं।

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