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चार दिन का ही पड़ाव जिंदगी

एस.के.कपूर ‘श्री हंस’
बरेली(उत्तरप्रदेश)
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कभी उतार तो कभी चढ़ाव है यह जिन्दगी,
कभी प्यार तो कभी घाव है यह जिन्दगी।।
बहुत अनोखा अनमोल उपहार है यह-
कभी भाव तो कभी दुर्भाव है यह जिन्दगी॥

कभी मिलन कभी टकराव है यह जिन्दगी,
कभी आत्मीयता का अभाव है यह जिन्दगी।
अपने अंतर्मन की सदा ही सुनते रहो-
नहीं तो अपनों से खिंचाव है यह जिन्दगी॥

गर प्यार नहीं तो बैर भाव है यह जिन्दगी,
कभी प्रेम कभी नाराज़गी बहाव है जिंदगी।
गम और खुशी दोनों ही पहलू जिंदगी के-
दोनों तरह का ही हाव-भाव है यह जिन्दगी॥

जान लो कर्म पथ की नाव है यह जिन्दगी,
बढ़ते रहना ही स्वभाव है यह जिन्दगी।
ये दुनिया तेरा घर नहीं,छोड़ कर जाओ प्रभाव-
बस चार दिन का ही पड़ाव है यह जिन्दगी॥

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