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चिकित्सा मुफ्त तो शिक्षा क्यों नहीं…?

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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पंजाब में कांग्रेस की उथल-पुथल पूरे देश का ध्यान खींच रही है,लेकिन वहीं से एक ऐसा बयान भी आया है,जिस पर नेताओं और नौकरशाहों को तुरंत ध्यान देना चाहिए। वह बयान है-दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का। श्री केजरीवाल आजकल अपनी आप पार्टी का चुनाव अभियान चलाने के लिए पंजाब की यात्रा पर हैं। वे अपने भाषणों में कांग्रेस और भाजपा की टांग खिंचाई करते हैं,जो स्वाभाविक है लेकिन वहाँ उन्होंने एक गजब की बात भी कह दी है। निवेदन यह है कि जब तक कोई राष्ट्र अपनी शिक्षा और चिकित्सा को सबल नहीं बनाएगा,वह निर्बल हुआ पड़ा रहेगा। भारत की लगभग सभी सरकारों ने इन दोनों क्षेत्रों में थोड़े-बहुत सुधार की कोशिश जरुर की है लेकिन ये दोनों क्षेत्र यदि बलवान हो जाएं तो भारत को महासंपन्न और महाशक्ति बनने से कोई रोक नहीं सकता। अरविंद केजरीवाल ने इस दिशा में पहले दिल्ली में कदम बढ़ाया और अब यही काम बड़े पैमाने पर पंजाब में करने की घोषणा की है। उन्होंने कहा है कि पंजाब के हर गाँव में एक अस्पताल खुलेगा। सबका इलाज़ मुफ्त होगा,जाँच मुफ्त होगी। हर आदमी का इलाज-पत्र बनेगा,ताकि उसमें उसकी सारी बीमारियों और इलाजों का ब्यौरा रहेगा। जिन नागरिकों की शल्य-चिकित्सा होगी, वह १५ लाख रु. तक मुफ्त होगी। विरोधी दल कह सकते हैं कि श्री केजरीवाल ने यह चुनावी फिसलपट्टी खड़ी कर दी है ताकि इस लालच में मत फिसलते चले आएं। आपको किसने रोका है ? आप भी ऐसी घोषणा क्यों नहीं कर देते ? कोई हारे, कोई जीते,जनता का तो भला ही होगा। यह सबको पता है कि इलाज़ के नाम पर भारत में आजकल कितनी जबर्दस्त ठगी होती है। यह खुशी की बात है कि राजस्थान के हर जिले में चिकित्सा महाविद्यालय खोलने का बीड़ा मुख्यमंत्री ने उठाया है और प्रधानमंत्री ने भी उनका समर्थन किया है लेकिन इनमें हिंदी में पढ़ाई कब शुरु होगी ? कौन माई का लाल यह हिम्मत करेगा ? पिछले ७ वर्षों में हमारे २ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रियों ने स्वभाषा में चिकित्सा की पढ़ाई शुरु करवाने का वायदा कई बार किया लेकिन आज तक शुरु नहीं हुई। ऐलोपैथी अब भी जादू-टोना बनी हुई है,अंग्रेजी के कारण। इसी कारण ग्रामीणों और गरीबों के बच्चे चिकित्सक नहीं बन पाते। ठगी का भी कारण यही है। यदि चिकित्सा की पढ़ाई हिंदी में शुरु हो जाए और ऐलोपैथी,आयुपैथी, होमियोपैथी और यूनानीपैथी की संयुक्त पढ़ाई हो तो यह भारत का ही नहीं,दुनिया का नया चमत्कार होगा और ठगी भी खत्म होगी। अमेरिका ने द्वितीय महायुद्ध के बाद अपने शिक्षा और चिकित्सा के बजट में जबर्दस्त बढ़ोतरी की थी। उसने यूरोप को पीछे छोड़ दिया और वह आज दुनिया का सबसे अधिक संपन्न और शक्तिशाली राष्ट्र बन गया है। शिक्षा मन को मजबूत करेगी और चिकित्सा तन को! तब धन तो अपने आप बरसेगा।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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