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जन्मदिन

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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आज मेरा जन्मदिन है,
मगर जन्मदिन मनाने का औचित्य क्या है ?
भगवान जितने दिनों की आयु दिए हैं,
उसमें से तो एक दिन कम हो गया है
फिर खुशी किस बात की !
और फिर जन्मदिन मनाऊं किसके साथ,
मेरे जन्मदिन से जिसे खुशी होगी, वो तो है नहीं
माँ को खुशी होगी पर वो मनाती नहीं,
आखिर लोग जन्मदिन मनाते क्यों हैं ?
केक काटना और मोमबत्ती बुझाना,
खुशी के समय पर अंधकार करना
ये कैसा रिवाज है ?
इससे तो अच्छा किसी भूखे को खिलाओ,
किसी वस्त्रहीन को वस्त्र दो
दो-चार पेड़ लगाओ,
पशु-पक्षियों को दाना दो।

आज सुबह योग-व्यायाम के
बंधु व बांधवियों ने,
फूल देकर ‘हैप्पी बर्थडे’ बोला
शुभकामनाएं दी,
ऊपर से सब ठीक ही था,
पर अंदर दिल उदास था
फिर भी उनके साथ हँसना पड़ा।

कैसा इस संसार का नियम है,
दूसरों को खुश रखने के लिए,
अपने को खुश रखना पड़ता है,
मनुष्य सारा जीवन तो नाटक ही करता है
क्योंकि हम जीते ही हैं दूसरों के लिए,
हम अपने लिए कहां जी पाते हैं!

मुझे भी जीना है दूसरों के लिए,
घर-परिवार के लिए, देश के लिए
समाज के लिए, बंधु-बांधवों के लिए,
कविता के लिए, कहानी के लिए
आप सबके लिए जिऊंगा,
सारे गम भुला कर जिऊंगा
हँसी-खुशी से जीवन बिताऊंगा,
मैं सौ वर्ष तक जिऊंगा।
आप सबके आशीर्वाद से,
प्रभु के आशीर्वाद से॥

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