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जब तक पिता रहे जीवन में…

राधा गोयल
नई दिल्ली
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उनकी साँसों से मेरी खुशियाँ (पिता दिवस विशेष)…

दु:ख किसको कहते जीवन में, कभी समझ न पाया,
जब तक पिता रहे जीवन में, पड़ा न दु:ख का साया
किसको कहते हैं अभाव, जीवन में कभी न जाना,
बेफिक्री से खेल-कूद में अपना समय बिताना।

किसी चीज की पड़े जरूरत, पापा को बतलाते,
और पिताजी शाम को आते वक्त सदा ले आते
सिर्फ तीन जोड़ी कपड़ों में, पिता ने किया गुजारा,
अपनी सारी खुशियों को, पापा ने हम पर वारा।

गर्मी के मौसम में सुबह मीठी लस्सी बनाना,
अपने सारे बच्चों को बड़े प्यार से रोज पिलाना
दोपहर को ठंडाई बनती, रात को ठंडा दूध,
पापा के लाए देसी घी के बिस्कुट खाए खूब।

शान्त सौम्य व्यक्तित्व पिता का, क्रोध से कोसों दूर,
आज छोड़कर चले गए हो, इस दुनिया से दूर
समस्याएँ तो आई होंगी, हमें नहीं बतलाईं
अपने बूते मात-पिता ने सब बाधा सुलझाईं
बचपन में प्रेरक कहानियाँ हमको रोज सुनाईं
हम भी कुछ विशेष बन पाएँ, यह प्रेरणा जगाई।

पिता गए गोलोकवास को, तब आभास हुआ था,
सिर पर हाथ पिता का था, तो मैं बेफिक्र रहा था
मात-पिता ने संस्कार जो दिए, पालना करता,
अपने मातु-पिता की बातें, मैं बच्चों से करता।
पिता की साँसों से जिन्दा हैं मेरी खुशियाँ,
पिता तुम्हारे बिना लगे वीरान ये दुनिया॥