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जलता रहे प्रेम दीप

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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न कोई चाहत, न कोई शर्त, बस प्रेम का उजियारा,
मन से मन का संग जुड़ा, जैसे चंद्र का तारा।

ना स्वार्थ, ना अभिमान, बस एक निश्चल धारा,
जो हर दु:ख में साथ चले, सुख में झूमे पारा।

नज़रों में सच्चाई हो, दिल में हो अपनापन,
हर स्पर्श में हो कोमलता, हर शब्द में हो चंदन।

प्रेम वो दीप है, जो आँधियों में भी जलता रहे,
हर जन्म में वही आत्मा, वही अनुराग पलता रहे।

ऐसा प्रेम जो अमर रहे, जैसे सागर की लहर,
जो हर जनम में संग चले, न टूटे यह बंधन अमर॥