श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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जल ही कल…
हे पावन गंगा मैया, तुम्हें प्रणाम,
गगन से बरसते जल तुझे प्रणाम।
हम सबके लिए जल ही जीवन है,
अगर जल नहीं मिला तो, मरन है।
जल बचाना, मतलब प्राण बचाना,
व्यर्थ कभी नहीं, जल को बहाना।
जल का महत्व, रेगिस्तान में देखो,
व्यर्थ जल जो बहाता है, उनको रोको।
जल के बिना अन्न नहीं उपजता है,
बीज डालकर तब किसान रोता है।
पुण्य धरा पर पर्यावरण बचाता है,
नील गगन से तभी जल आता है।
धरती पर वृक्ष लगाना भी जरूरी है,
चिता जलने के लिए काठ जरूरी है।
मैं ‘देवन्ती’ आज खाती हूॅ॑ कसम,
जल नहीं बर्बाद करूंगी, करूँगी रहम॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |