ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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उलझन तिलझन कितनी भी हो,
मंजिल भी चाहे दूर लगे
पल छिन-पल छिन बढ़ना है आगे,
संग सभी मिल साथ चले।
भूल-भुलैया है मार्ग में,
चकित सभी हैं ठगे-ठगे
कौन पराया कौन है अपना,
कैसे रजनी दीप जले।
सुख सपनों के मकड़जाल में,
सूरज चन्दा गले मिले
कितने सोपानों पर है चलना,
कदम-कदम पर गए छले।
अजब है ताना-गज़ब है बाना,
कैसे-कैसे वितान रचे।
अचरज भरा विश्वास है इसमें,
दिल में बस प्यार पले।
कैसे ओढूं सुर्ख चुनरिया,
हवा के झोंके उड़े-उड़े।
परिणय-सूत्र में बंधे जो साथी,
यहां मिलें या वहां मिले॥
परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।