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जीवन के उस पार

राजेश पड़िहार
प्रतापगढ़(राजस्थान)
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सिर्फ नैनों में थे
सपने,
धरातल पर
होते नहीं,
जो कभी साकार।
अब,
अपने कद से भी
ऊंचा,
हो गया है
उनका आकार।

ये उन दिनों की
बात है,
जब हाथों में
होता था गुल्ली-डंडा।
छोटी-सी डपट पर,
गरम होता खून
पापा के पदचाप की
आहट सुन,
हो जाता था ठंडा।
सिर्फ खेलकूद,
लड़ाई-झगड़ा
पलभर में फिर साथ,
सारी माथा-फोड़ी
हो जाती थी निराधार।

निष्पाप थे रिश्ते,
नापाक थी दोस्ती
सच न मन में,
पलता
कोई पाप था।
हमारा मन,
पल-पल में
कलुषित होकर भी,
कितना साफ था।
अब बड़े हो गए,
अपने पैरों खड़े हो गए
पर पल-पल,
पल रहा है व्यापार।

अब न रात को
नींद है,
न दिन को
मिलता चैन है।
बस भागना ही भागना,
हर वक्त पाने को
मंजिल,
रहते बेचैन हैं।
सच-सच
होता है कड़वा,
पर वाकई में
हम कितने
हो गए लाचार।

अब अपने
जीवन के रुख को,
कुछ इस कदर मोड़िए।
माया के इस बंधन को,
छोड़ कर कुछ सवालों के
बाण छोड़िये,
बशर्ते जवाब तो
हाँ ही होगा,
पर आजमाना तो सही
एक बार।
बस केवल यूँ ही,
पूछ लेना
क्या वह जाना चाहेगा,
जीवन के उस पारll

परिचय-राजेश कुमार पड़िहार की जन्म तारीख १२ मार्च १९८४ और जन्म स्थान-कुलथाना है। इनका बसेरा कुलथाना(जिला प्रतापगढ़), राजस्थान में है। कुलथाना वासी श्री पड़िहार ने स्नातक (कला वर्ग) की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में स्वयं का व्यवसाय (केश कर्तनालय)है। लेखन विधा-छंद और ग़ज़ल है। एक काव्य संग्रह में रचना प्रकाशित हुई है। उपलब्धि के तौर पर स्वच्छ भारत अभियान में उल्लेखनीय योगदान हेतु जिला स्तर पर जिलाधीश द्वारा तीन बार पुरस्कृत किए जा चुके हैं। आपको शब्द साधना काव्य अलंकरण मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी के प्रति प्रेम है।

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