मुकेश कुमार मोदी
बीकानेर (राजस्थान)
****************************************
कौन है वो मानव जो, जीकर भी है मृत समान,
कविता के द्वारा करूं, इस पहेली का समाधान।
जिन्दा होकर भी जिन्दा नहीं, ऐसा प्राणी कौन,
मैंने उनको पहचाना, धारण करके मन का मौन।
मिट ना पाती इच्छाएं, रहता सदा उनके अधीन,
अध्यात्म से दूर होकर, रहता वासनाओं में लीन।
लिप्त रहे काम वासना में, जो है अत्यन्त भोगी,
उसका जीवन मृत समान, कहलाता है वो रोगी।
दुनिया के विपरीत चले, वो वाममार्गी कहलाता,
नियम और मर्यादाओं का, जीवन उसे ना भाता।
बात-बात पर आलोचना, करती जिसकी वाणी,
ना माने जो कोई कायदा, मृत समान वो प्राणी।
कार्य धर्म का करने में, आती हो जिसको लाज,
धन के लोभ में डूबकर, बन जाता वो दगाबाज।
दया करे ना किसी पर, सिर्फ अपना लाभ सोचे,
मृत समान वो मानव है, जो हक औरों का नोंचे।
जिसका साहस और, आत्मविश्वास मिट जाता,
ऐसा मानव जीवन में, सफलता कभी ना पाता।
मनोबल के अमूल्य धन से, दरिद्र वो रह जाता,
ऐसा व्यक्ति समाज में, मरे समान ही कहलाता।
अपने जीवन के निर्णय, जो खुद नहीं ले पाता,
हर कार्य में औरों से, सहारे की उम्मीद लगाता।
महामूर्ख है वो प्राणी, जो रहता विवेक से हीन
जीकर भी जिन्दा नहीं, वो सबकी दृष्टि में दीन।
सामाजिक मर्यादाओं का, देता जो गला घोंट,
अपने आत्मसम्मान पर, जो खुद लगाता चोट।
अपने कुकर्मों से जो होता, समाज में बदनाम,
जीवित लोगों में उसका, लिया ना जाता नाम।
पालकर बैठा है जो, अपने तन में हजारों रोग,
सेहत अपनी बिगाड़ी, कर-करके अनेक भोग।
जीवन का सच्चा आनन्द, भोग नहीं वो पाता,
ऐसा प्राणी मृत्यु की, कामना में ही लग जाता।
वृद्धावस्था के चरम पर, जिसका जीवन आया,
शरीर और बुद्धि दोनों को, अक्षम उसने पाया।
आश्रित होता औरों पर, जीना कठिन हो जाता,
मृत्यु की प्रतीक्षा में, केवल कष्ट भोगता जाता।
सदा क्रोध जो करता, वो जालिम ही कहलाता,
उसका उपस्थित होना, सबको दुखी कर जाता।
अनेक जीवों को पहुंचाता, जीवनभर आघात,
भावना हीन ऐसे पुरुष से, ना करता कोई बात।
पापकर्म से अर्जित धन से, पालता जो परिवार,
सदा प्रदूषित ही रहते, उसके बच्चों के संस्कार।
जो अपने सुख की, कामना में ही रहता खोया,
हर जन्म के लिए उसने, खुद का भाग्य डुबोया।
संवेदनहीन होकर जिसने, सोचा अपना स्वार्थ,
जीवनभर ना किया जिसने, एक भी परमार्थ।
खाने-पीने भोगने में अपना, जीवन जो बिताता,
ऐसा व्यक्ति देश के लिए, अनुपयोगी कहलाता।
सबका अपमान करने से, जो ना कभी चूकता,
ऐसे मानव के चरित्र पर, जिसे देखो वो थूकता।
हर कार्य में कमी देखता, कहलाता वो नादान,
करे सदा जो परनिंदा, वो इंसान है मृत समान।
अहंकार में डूबकर जो, परमात्मा को दे नकार,
कभी ना कर पाता वो, अपने भाग्य का सुधार।
ईश्वर प्रति ना शेष बची, जिसके मन में आस्था,
कोई नहीं रखना चाहेगा, ऐसे व्यक्ति से वास्ता।
संस्कारों के संशोधन का, जो करता हो विरोध,
आते ही रहते उसके, जीवन में अनेक अवरोध।
दुर्गुण जितने बताए हैं, उनसे खुद को बचाओ,
अपने जीवन को तुम, जीवन्त कर दिखलाओ॥
परिचय – मुकेश कुमार मोदी का स्थाई निवास बीकानेर में है। १६ दिसम्बर १९७३ को संगरिया (राजस्थान)में जन्मे मुकेश मोदी को हिंदी व अंग्रेजी भाषा क़ा ज्ञान है। कला के राज्य राजस्थान के वासी श्री मोदी की पूर्ण शिक्षा स्नातक(वाणिज्य) है। आप सत्र न्यायालय में प्रस्तुतकार के पद पर कार्यरत होकर कविता लेखन से अपनी भावना अभिव्यक्त करते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-शब्दांचल राजस्थान की आभासी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक प्राप्त करना है। वेबसाइट पर १०० से अधिक कविताएं प्रदर्शित होने पर सम्मान भी मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज में नैतिक और आध्यात्मिक जीवन मूल्यों को पुनर्जीवित करने का प्रयास करना है। ब्रह्मकुमारीज से प्राप्त आध्यात्मिक शिक्षा आपकी प्रेरणा है, जबकि विशेषज्ञता-हिन्दी टंकण करना है। आपका जीवन लक्ष्य-समाज में आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों की जागृति लाना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-‘हिन्दी एक अतुलनीय, सुमधुर, भावपूर्ण, आध्यात्मिक, सरल और सभ्य भाषा है।’