हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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भगवान हैं माॅं रूप में, पहचान लो सम्मान दो,
देते नहीं सम्मान तो अपमान भी माॅं का न हो।
माॅं बिन नहीं जीवन कहीं, हर जिन्दगी को जन्म दे,
हर दु:ख सहे खुद ही, मगर संतान का हर सुख रचे।
सम्मान हो माॅं का जहाॅं, उस दर में फिर सुख ही बनें।
देते नहीं सम्मान तो, अपमान भी माॅं का न हो।
भगवान ही दाता विधाता, जन्म तो माॅं से लिया,
क्या है गलत कह दें अगर जीवन उन्हें माॅं ने दिया।
पूजा करो भगवान की, माॅं का भी तो सत्कार हो,
देते नहीं सम्मान तो अपमान भी माॅं का न हो।
खुद का लहू कतरों में दे, संतान को जब भूख हो,
पहचानती संतान के भावों से उसके दर्द को।
दुनिया में ऐसा कौन जो, समझे किसी के भाव को,
देते नहीं सम्मान तो अपमान भी माॅं का न हो॥
भगवान हैं माॅं रूप में…
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।