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लाश खाना छोड़ो, शाकाहारी बनो

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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प्राकृतिक आपदाओं पर हुई नई खोजों के नतीजें मानें तो, इन दिनों बढ़ती मांसाहार की प्रवृत्ति ही भूकंप और बाढ़ के लिए जिम्मेदार है। आइंस्टीन पेन वेव्ज के मुताबिक ‘मनुष्य की स्वाद की चाहत’, खासतौर पर मांसाहार की आदत के कारण प्रतिदिन मारे जाने वाले पशुओं की संख्या दिनों-दिन बढ़ रही है। भारत देश में वर्तमान में जो बाढ़, भूस्खलन, प्राकृतिक आपदाओं और सूखा आदि का कई कारणों के कारण जैसे विकास के नाम पर उत्खनन, सड़कें चौड़ीकरण, नए-नए पहाड़ी क्षेत्रों में जल परियोजनाओं ने हमारी प्राकृतिक सम्पदा को खोखला कर दिया है और उसके साथ मांसाहार का भरपूर उपयोग करने से वहां की शुचिता नष्ट होने के कारण हमारे ऊपर विपरीत प्रभाव पड़ा है और पड़ेगा।’
सूजडल (रूस) में पिछले दिनों हुए भूस्खलन और प्राकृतिक आपदा पर हुए एक सम्मेलन में भारत से गए भौतिकी के ३ वैज्ञानिकों ने एक शोध-पत्र पढ़ा। डॉ. मदन मोहन बजाज, डॉ. इब्राहिम और डॉ. विजयराज सिंह के अलावा दुनियाभर के २३ से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा तैयार शोध-पत्र के आधार पर कहा गया कि भारत, जापान, नेपाल, जार्डन, अमेरिका, अफगानिस्तान व अफ्रीका में पिछले दिनों आए ३० बड़े भूकंपों में आइंस्टीन पैन वेव्ज (इपीडब्ल्यू) या नोरीप्शन वेव्ज बड़ा कारण रही है।
इन तरंगों की व्याख्या यह की गई है कि, कत्लखानों में जब पशु काटे जाते हैं तो उनकी अव्यक्त कराह, फड़फड़ाहट, तड़प वातावरण में तब तक रहती है, जब तक कि उस जीव का माँस, खून, चमड़ी पूरी तरह नष्ट नहीं होती। उस जीव की कराह खाने वालों से लेकर पूरे वातवरण में भय, रोग और क्रोध उत्पन्न करती है। यूँ कहें कि, प्रकृति अपनी संतानों की पीड़ा से विचलित होती है। अध्ययन में बताया गया है कि, प्रकृति जब ज्यादा क्षुब्ध होती है तो मनुष्य आपस में भी लड़ने- भिड़ने लगते हैं, चिढ़-चिढ़े हो जाते हैं और विभिन्न देश-प्रदेशों में दंगे होने लगते हैं। सिर्फ स्वाद के लिए बेकसूर जीव जंतुओं की हत्या ही इस तरह के दंगों का कारण बनती है और कभी कभी आत्महत्या का भी।
इस अध्ययन के मुताबिक एक कत्लखाने से जिसमें औसतन ५० जानवरों को मारा जाता है, १०४० मेगावाट ऊर्जा फेंकने वाली इपीडब्ल्यू पैदा होती है। यानी दुनिया के करीब ५० लाख छोटे-बड़े कत्लखानों में प्रतिदिन ५० लाख करोड़ मेगावाट की मारक क्षमता वाली शोक तरंगें या इपीडब्ल्यू पैदा होती है। सम्मेलन में माना गया कि, कुदरत कोई डंडा लेकर तो इन तंरगों के गुनाहगार लोगों को दंड देने नहीं निकलती। उसकी एक ठंडी साँस भी धरती पर रहने वालों को कंपकंपा देने के लिए काफी है।
कत्लखानों में जानवरों का कत्ल होते समय उनकी जो चीत्कार निकलती है, उनके शरीर से जो स्ट्रेस हारमोन निकलते हैं और उनकी जो शोक तरंग निकलती है, वो पूरी दुनिया को तरंगित कर देती है, कम्पायमान कर देती है।
आज के आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि, जानवर हो या इन्सान, अगर उसको क्रूरता से या उम्र पूरी होने के पहले मारा जाता है तो उसके शरीर से निकलने वाली जो चीख-पुकार है, उसके कम्पन में जो नकारात्मक तरंग निकलती है, वो पूरे वातावरण को बुरी तरह से प्रभावित करती है, और उससे सभी मनुष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। खासतौर पर सबसे ज्यादा असर ऐसे जीव का उन मनुष्यों पर पड़ता है, जो उसका माँस खाते हैं। बड़ी बात ये है कि, खाने वाले के परिजन अधिक तनावग्रस्त, दुखी व भयंकर रोगों से पीड़ित होते जाते हैं। इससे मनुष्य में अत्यंत क्रोध व हिंसा करने की प्रवृत्ति बढ़ती है, जो पूरी दुनिया में अत्याचार और पाप बढ़ा रही है।
अफ्रीका के २ प्रोफेसर, २ जर्मनी, २ अमेरिका और १ भारतीय डॉ. मदन मोहन आदि वैज्ञानिकों ने २० साल इस विषय पर शोध किया है। उनका शोध ये कहता है कि, जानवरों का जितना ज्यादा कत्ल किया जाएगा, दुनिया में उतने ही अधिक भूकंप आएंगे, जल-जले आएंगे। उतना ही दुनिया में संतुलन बिगड़ेगा और लोग दुखी, तनावयुक्त व हृदयाघात से पीड़ित होंगे।

इस प्रकार के नकारात्मक वातावरण के कारण विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ा है। इनसे होने वाले विनाश से जो तरंगें निकलेंगी, वो मानव समाज के साथ प्रकृति को नेस्तनाबूत करेंगी, यह सुनिश्चित है। आगामी काल का रूप बहुत ही भयावह है, जब आपसी युद्ध के कारण अन्न की कमी और जानवरों का न होना कितना असंतुलन पैदा करेगा, जिसका उत्तरदायित्व अप्रत्यक्ष में हमारा ही होगा।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।