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टूटते रिश्ते…

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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आज-कल रिश्तों में,
खटास आने लगी है
आपसी व्यवहार में,
मिठास जाने लगी है।

रिश्तों की कद्र नहीं,
नहीं उन पर विश्वास
स्वार्थ हो गया भारी,
कैसे हो जीवन पास।

माँ-बाप भी बेटियों से,
खूब करते हैं पक्षपात
बेटों की करते हैं तरफदारी,
बेटियों पर कुठाराघात।

ऐसे ही एक बेटी का दुःख,
हमको सुनने में आया है
किस्मत की मारी बेचारी को,
अपनों ने खूब रुलाया है।

एक बहन भाई की खातिर,
अपने ख्वाब सजाती है
उसकी खुशी के लिए,
अपना ग़म तक छुपाती है।

अपने भाईयों की खातिर,
भूल गईं पढ़ना-लिखना
त्याग दिया सारा सुख,
वैभव और सुनहरा सपना।

सोचती है एक दिन भाई,
दुःख में हाथ बंटाएगा
घर में आईं मुसीबत को,
एक पल में दूर भगाएगा।

अपने हिस्से की सम्पत्ति तक,
करती है भाईयों के नाम
ताकि मुसीबत में वो,
हमेशा आए उसके काम।

लेकिन आसान शब्दों में,
भाई दे देते हैं जवाब
कर दिया हमने ब्याह,
अब मत देखो कोई ख्वाब।

देखो कैसे इस कलयुग में,
स्वार्थ हो गया भारी
बीवी-बच्चों के आगे,
उनकी मति गई मारी।

इसी कारण से दुनिया में,
रिश्ते हो रहे हैं शर्मशार।
चुगलखोरों की बातों में,
ख़राब हो रहा व्यवहार॥

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

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