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ढूंढूं तुझको मैं कहाँ-कहाँ…??

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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ईश्वर और मेरी आस्था स्पर्धा विशेष…..

हे,मेरे ईश्वर…!
ओ,माय गॉड…।
ऐ,मेरे मालिक…!
या,खुदा …..!
हाथ उठाऊं,
अरज करूँ मैं
ढूंढूं तुझको मैं कहाँ-कहाँ…??
मन्दिर में ढूंढा तो मिली,
बस तेरी मूरत थी प्यारी।
गिरजे का घण्टा बजा,मैं झांका,
तेरी शान थी,अजब-सी न्यारी।
मज्जिद से ही,नमाज भी अता की,
झलक कहीं नहीं थी,वो प्यारी-प्यारी।
पत्थर को पूजा,
ग्रन्थ में खोजा।
मिला नहीं तू,
महिमा थी सारी।
हे,मेरे ईश्वर…!
ओ,माय गॉड…।
ऐ,मेरे मालिक…!
या,खुदा…!
हाथ उठाऊं,
अरज करूँ मैं
ढूंढूं तुझको मैं कहाँ-कहाँ…??

तीरथ-तीरथ
मैं खोजता फिरूँ तुझे,
मिले न तू तो,
बता और करूँ भी मैं क्या…??
पाने को तुझको ही,
लिए कितने ही जन्म फिर भी
न पा सकूं तुझे तो,
औरों को पाऊँ भी मैं क्या…??
केवल सोच ही बस मेरी,
पहुँच पा रही है तुझ तक।
अरज मेरी भी क्या,
आखिर कभी पहुँचेगी तुझ तक…??
हे,मेरे ईश्वर…!
ओ,माय गॉड…।
ऐ,मेरे मालिक…!
या,खुदा…!
हाथ उठाऊं,
अरज करूँ मैं
ढूंढूं तुझको मैं कहाँ-कहाँ…??

यज्ञ करूँ,या करूँ मैं पूजा,
या फिर चादर चढ़ाऊँ मैं
ग्रन्थ पूजूँ,पढूं बार-बार,
या रहूँ प्रार्थना में,हाथ उठाऊँ मैं।
दीप जलाऊँ या धूप लगाऊं,
या अगर-मोम से करूँ पूजा तुम्हारी।
मूरत बनवाऊँ,या घण्टा चढ़वाऊं,
सजदा करूँ या करूँ शबद-तयारी।
हे,मेरे ईश्वर…!
ओ,माय गॉड…।
ऐ,मेरे मालिक…!
या,खुदा…!
हाथ उठाऊं,
अरज करूँ मैं
ढूंढूं तुझको मैं कहाँ-कहाँ…??

माँ की कोख से हूँ आया,
इस दुनिया के द्वारे-दरवाजे तक।
लेकिन तुझ तक जाने की सही राह,
नहीं मिल पाई है क्यों अभी तलक…??
चिता पर चढूं भले ही,
या भले ही क्यों न कब्र में जाऊँ मैं
तू जो मुझे मिले,
तो मीरा-विष भी हँस कर पी जाऊँ मैं।
हे,मेरे ईश्वर…!
ओ,माय गॉड…।
ऐ,मेरे मालिक…!
या,खुदा…!
हाथ उठाऊं,
अरज करूँ मैं
ढूंढूं तुझको मैं कहाँ-कहाँ…??

पर मिले न तू तो,
यह दुनियां लगती हरजाई है।
जीवन तो जीवन,
क्या मरने के बाद भी यहां,
किसी ने प्रीत निभाई है…??
मिलेगा तू,तो ही समझूंगा,
कि अब ही मिलन ऋतु आई है।
पाने को तुझको ही तो,
मन पर मेरे,घनी उदासी छाई है।
हे,मेरे ईश्वर…!
ओ,माय गॉड…।
ऐ,मेरे मालिक…!
या,खुदा…!
हाथ उठाऊं,
अरज करूँ मैं
ढूंढूं तुझको मैं कहाँ-कहाँ…??

स्वर्ग भी मिले न भले,
भले न जन्नत का हो पूरा
कोई ख्वाब प्यारा।
नरक की आग भी,
न जला सकेगी मुझको।
दोजख का दुःख भी ,
तुझ संग लगेगा और ही न्यारा।
दुनिया के लिए ही तो,
तूने,वनवास सहा
छानी रेगिस्तानों की खाक,
सूली पर हँस कर चढ़ा
और दर-दर की ठोकरें खाई है।
इसीलिए ही तो,
हे,मेरे मंगलकार…!
तेरे ही दम पर तो,दुनिया में,
सब खुशियां खिलखिलाई है।
हे,मेरे ईश्वर…!
ओ,माय गॉड…।
ऐ,मेरे मालिक…!
या,खुदा…!
हाथ उठाऊं,
अरज करूँ मैं
ढूंढूं तुझको मैं कहाँ-कहाँ…??

कण-कण,पल-पल,
और प्रकृति के सब मण्डल तक
सृष्टि के आदि से अनादि अंत तक,
मन पर ‘अजस्र’ रहेगा
बस एक तू,
और बस एक विश्वास तेरा।
तू तो मिलता है सबको,
जरा-सा,जब भी,कोई बस,
प्रेम से नाम ले लेवे जो तेरा।
हे,मेरे ईश्वर…!
ओ,माय गॉड…।
ऐ,मेरे मालिक…!
या,खुदा…!
हाथ उठाऊं।
अरज करूँ मैं,
पाऊँ तुझको ही,सब ही जगह मैं…॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|

 

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